स्विजरलैंड, स्वीडन को लुभा रही चंद्रपुर झुग्गी की बांबू राखिया
चंद्रपुर के बंगाली कैंप झोपडपट्टी में रहनेवाली बांबू डिजाइनर और महिला सक्षमीकरण कार्यकर्ता मीनाक्षी मुकेश वालके की बांबू राखियां देशभर में लोकप्रिय हो चुकी है।
मुंबई: चंद्रपुर के बंगाली कैंप झोपडपट्टी में रहनेवाली बांबू डिजाइनर और महिला सक्षमीकरण कार्यकर्ता मीनाक्षी मुकेश वालके की बांबू राखियां देशभर में लोकप्रिय हो चुकी है. लॉकडाउन की भीषण मार सहने के बाद इस वर्ष रक्षा बंधन ने उन्हें राहत ही नहीं गौरव की हरिभरी छाव दी है. मीनाक्षी की राखियों को सीधे स्विजरलैंड से मांग आने के बाद उनकी खुशी व उत्साह के सामने आसमान बौना पड़ रहा है.
इंग्लैंड और स्वीडन जैसे देशों में भी राखियां व अन्य बांबू कलाकृतियां पहुंच रही होने की जानकारी मीनाक्षी ने बुधवार को दी. द बांबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र के नाम से मशहूर सौ मीनाक्षी वालके ने 2018 में केवल 50 रुपयों में सामाजिक गृहोद्योग अभिसार इनोवेटिव की स्थापना की थी. उसी समय उन्होंने पहली बार बांबू की राखियां भी बनाई थी. अब उनका कारवां सात समुंदर पार पहुंचा है. इससे मीनाक्षी की सहयोगी कारीगर महिलाओं में हर्षोल्लास व्याप्त है.
स्विजरलैंड की सुनीता कौर ने मीनाक्षी की बांबू राखियों के साथ ही अन्य कलाकृतियां भी वहां बिक्री हेतु मंगाई है. स्वीडन के सचिन जोंनालवार समेत लंदन की मीनाक्षी खोडके ने भी अपने ग्लोबल बाप्पा शो रूम के लिए राखियों की खरीद की है. गौरतलब है कि इस वर्ष मार्च माह में ही मीनाक्षी को इंडो कॅनडियन आर्ट्स एंड कल्चर इनिशिएटिव नामक कनाडा देश की संस्था का वूमन हिरो पुरस्कार वर्चुअल तरीके से प्रदान किया जा चुका है.
बांबू की पूर्णतया इको फ्रेंडली ऐसी बांबू राखियों में प्लास्टिक का तनिक भी अंश न होना यह मीनाक्षी वालके की विशेषता है और राखियों को सजाने वे खादी धागे के साथ तुलसी मणी एवम् रुद्राक्ष का प्रयोग करती है. मीनाक्षी इस संदर्भ में बताती है कि अपनी पावन संस्कृती का शुद्ध एहसास इस भावनिक संस्कार में महसूस होना चाहिए. प्रकृति को वंदन करते हुए आध्यात्मिक अनुभूती मिलनी चाहिए, ऐसा हमारा प्रयास रहता है. स्वदेशी, संस्कृती और पर्यावरण संदेश का प्रेरक संयोग करने की कोशिश इससे हम कर रहे है, ऐसा मीनाक्षी ने बताया. बतौर मीनाक्षी, उनका काम ही मुख्य रूप से प्लास्टिक का प्रयोग न्यूनतम हो इस दिशा में चलता है. वसुंधरा का सौदर्य अबाधित रहे, इस हेतु वे समर्पित है. इस लिए उनका हर काम, कलाकृति शुद्ध स्वरूप में होती है.
लॉकडाउन में मीनाक्षी और सहयोगियों का बड़ा नुकसान हुआ. कुछ कारीगरों पर किराणा किट लेने की नौबत आई. ऐसे संकट में कोई भी साथ में खड़ा नहीं रहा. डेढ़ वर्ष से काम ठप है. इस बिकट प्रसंग में अब राखी के बंधन ने आर्थिक अड़चनों से मुक्ति दिलाने में बड़ा साथ दिया है, ऐसी भावुक प्रतिक्रिया भी मीनाक्षी ने व्यक्त की. किसी भी प्रकार की परम्परा या विरासत नहीं, समर्थन या मार्गदर्शन नहीं, बेहद गरिबी में मीनाक्षी ने अभिसार इनोव्हेटिव यह सामाजिक उद्यम शुरू किया. झोपडपट्टी की महिला व लड़कियों को मुफ्त प्रशिक्षण देकर रोजगार देते हुए मीनाक्षी का काम बढता जा रहा है. यहां बता दे, बीते वर्ष मीनाक्षी की राखी महाराष्ट्र के तत्कालीन वित्त एवं वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी थी!
इस साल 50 हजार का लक्ष्य
मीनाक्षी ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने 50 हजार राखियों का लक्ष्य रखा है. विदेशों से मांग बढ़ने के बाद अब स्थानीय स्तर से भी पूछ परख बरबस ही बढ़ गई है. लॉक डाउन से मीनाक्षी व उनकी सहयोगी महिलाओं पर भुखमरी ही नहीं, कर्ज की नौबत आई है. ऐसे में अब राखी ने उन्हें नव संजीवनी देकर उम्मीदें काफी बढ़ा दी है.
मीनाक्षी का अमीर खान कनेक्शन
भाजपा के सुधीर मुनगंटीवार महाराष्ट्र के वनमंत्री थे तब बल्लारपुर में स्टेडियम का उद्घाटन अमीर खान के हाथों हुआ था. इस बीच सैनिकी विद्यालय में अमीर खान के अल्पाहार की व्यवस्था की थी. उस समय मीनाक्षी के बांबू राखी का लोकार्पण भी नियोजित था परंतु समयाभाव में वह टल गया था. देर से ही सही उसके बाद अमीर खान के ही दंगल फिल्म की अभिनेत्री मिनू प्रजापती ने मीनाक्षी के बनाए बांबू गहनों की खरीदी कर प्रशंसा की थी. मीनाक्षी यह याद बड़े ही उत्साह से बताती है.
बांबू फ्रेंडशिप बैंड का आविष्कार
इको फ्रेंडली फ्रेंडशिप बैंड वैसे उपलब्ध या प्रचलित नहीं था. मुख्य रूप से धातू, प्लास्टिक के ही स्वरूप में वह अधिकांश उपलब्ध है. मीनाक्षी ने इसी वर्ष जून माह में बांबू के फ्रेंडशिप बैंड बनाने का आविष्कार किया. इसके माध्यम से भी स्वदेशी, पर्यावरण से मित्रता ऐसा संदेश दिया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि आज तक बांबू के फ्रेंडशिप बैंड उपलब्ध व लोकप्रिय नहीं थे.