नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 23 जुलाई को भारती एयरेटल (Bharti Airtel), वोडाफोन आइडिया (Vodafone Idea) और टाटा टेलीसर्विसेस (Tata Teleservices) की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें इन कंपनियों ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) से संबंधित बकाया की गणना में गलतियों को हवाला देकर दोबारा गणना करने का निर्देश दूरसंचार विभाग को देने की मांग की गई थी।
जस्टिस एनएन राव और ऋषिकेश रॉय की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद इस पर अपना फैसला सुनाया। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को 93,520 करोड़ रुपये का एजीआर-संबंधी बकाया चुकाने के लिए 10 साल का समय दिया था।
जस्टिस एलएन राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले सुनाए गए फैसले का संदर्भ लेते हुए कहा कि एजीआर-संबंधी बकाये की दोबारा गणना नहीं की जा सकती है। हालांकि अपनी याचिका में टेलीकॉम कंपनियों ने दूरसंचार विभाग द्वारा मांगे गए एजीआर-संबंधी बकाये की राशि की गणना में गलतियों के मुद्दे को उठाया गया था।
वोडाफोन ने अपनी याचिका में गणितीय गलतियों में सुधार की मांग की थी। भारती एयरटेल ने डुप्लीकेशन, अनएकाउंटेड पेमेंट्स और डिअलावड डिडक्शन का दावा किया था। भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेस तीनों टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में आंशिक एजीआर भुगतान की अनुमति मांगी थी।
दूरसंचार विभाग के मुताबिक, भारती एयरटेल को 43,000 करोड़ रुपये का एजीआर बकाया चुकाना है, जबकि वोडाफोन आइडिया को 50,000 करोड़ रुपये से अधिक के बकाये का भुगतान करना है। 2020 में शीर्ष अदालत ने वैधानिक देनदारियों की गणना पर भारत सरकार की स्थिति को बरकरार रखा था। केंद्र ने कहा थ कि नॉन-कोर बिजनेस से प्राप्त राजस्व को भी वार्षिक एजीआर अमाउंट में शामिल किया जाना चाहिए।
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