पिछले कुछ महीने से भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री मंदी के दौर से गुज़र रही है और अब ये मंदी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। देश की ऑटो इंडस्ट्री ने लगभग दो दशक में पहली बार पैसेंजर व्हीकल की बिक्री में रिकॉर्ड 30.98% कमी दर्ज की है। पिछले साल इसी महीने बिकी 2,90,391 यूनिट कारों के मुकाबले इस महीने कंपनी ने 2,00,790 वाहन बेचे हैं। पैसेंजर कार सैगमेंट में ये गिरावट 35.95% दर्ज की गई है। जुलाई 2018 में बिक्री 79,063 यूनिट के मुकाबले जुलाई 2019 में यूटिलिटी व्हीकल की बिक्री 67,030 यूनिट पर सिमट गई जो 15.22% की गिरावट दिखाता है। वैन सैगमेंट की बिक्री में 45.58% की गिरावट आई है।
देश की ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में 19 साल बाद इतनी बड़ी मंदी देखने को मिली है, पिछली बार साल 2000 में भी पैसेंजर वाहनों की बिक्री में ऐसी ही गिरावट आई थी, तब बाज़ार 35% तक टूटा था। पैसेंजर कारों की बिक्री में उस वक्त 39.86% कमी देखी गई थी। ये मंदी तब आई है जब आगामी सुरक्षा नियम भारत में लागू किए ही जाने वाले हैं। कार निर्माता कंपनियों और कंपोनेंट बनाने वालों ने मिलकर इन नियमों के हिसाब से वाहनों को ढालने में लगभग 80,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। अब अगर बाज़ार की हालत बेहतर नहीं हुई तो इस निवेश से उबर पाना कंपनियों के लिए काफी मुश्किल काम होगा।
मार्जिन बढ़ाने की तैयारी में कंपनियां
इस नुकसान की भरपाई के लिए कंपनियां अपना मार्जिन बढ़ाएंगी जिसका परिणाम और भी बुरा हो सकता है। मार्जिन बढ़ने से कारों की कीमतों में इज़ाफा होगा और पहले से मांग कम होने की दशा काफी नुकसान हो सकता है। इस मंदी से उभरने के लिए SIAM ने पैसेंजर वाहनों पर तत्काल GST दर घटाने की मांग की है, SIAM का कहना है कि इस दर को 28% से 18% पर लाना चाहिए। इससे विपरीत मिनिस्ट्री और रोड ट्रांसपोर्ट और हाईवे ने कुछ समय पहले ही वाहनों के मॉडल के हिसाब से रजिस्ट्रेशन शुल्क को 10 से 20 गुना करने की सिफारिश की है।
संकट में लाखों नौकरियां
इस मंदी का सीधा असर लोगों के रोज़गार पर भी पड़ा है। देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुज़ुकी ने 6% कर्मचारियों को निकाल दिया है, निसान इंडिया ने हाल में 1,710 कर्मचारियों को बर्खस्त किया है। नामी ऑटोमोटिव कंपनियां एकजुट होकर सरकार से मदद की अपील कर रही हैं और मंदी से उबरने के तरीके खोज रही हैं।
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