UPA सरकार में बांटे गये 'अंधाधुंध कर्ज' के कारण NPA की समस्या : वित्त मंत्री अरुण जेटली
उन्होंने कहा कि इन्हीं वजहों से 2012-13 और 2013-14 में वृहत आर्थिक समस्याएं खड़ी हुयीं
मुंबई। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि UPA सरकार के दौरान उच्च आर्थिक वृद्धि के आंकड़े और बैंकों के फंसे कर्जों (NPA) की बाढ़ दरअसल 2008 के वैश्विक ऋण संकट से पहले और बाद में दिये गये अंधाधुंध कर्ज की वजह से है। UPA सरकार के दौरान आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़ों को लेकर सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस में जुबानी जंग के बीच जेटली ने कहा कि उस समय की वृद्धि अंधाधुंध ऋण के बलबूते थी। बैंकों ने उस समय अव्यावहारिक परियोजनाओं को ऋण दिया, जिसके कारण बैंकिंग प्रणाली में NPA 12 प्रतिशत पहुंच गया है।
उन्होंने कहा कि इन्हीं वजहों से 2012-13 और 2013-14 में वृहत आर्थिक समस्याएं खड़ी हुयीं। जेटली ने चिकित्सकीय कारणों से लंबे अवकाश के बाद पिछले सप्ताह ही वित्त मंत्रालय का कार्यभार फिर से संभाला है। वह गुर्दा प्रत्यारोपण के कारण अप्रैल से अवकाश पर थे और उनकी जगह रेल मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। जेटली ने आज शाम बैंकरों के निकाय भारतीय बैंक संघ (IBA) की सालाना आम बैठक को वीडिया कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुये कहा कि जिस तरह वृद्धि तेज करने के लिये 28-31 प्रतिशत की दर से कर्ज वितरण में वृद्धि की गयी उसके दुष्परिणाम आगे चलकर दिखने ही थे।
उन्होंने NPA की समस्या के लिये बैंकों को भी दोषी ठहराते हुये कहा कि उस समय कमजोर परियोजनाओं को ऋण दिये गये। इसके चलते उन ऋण खातों में समस्या पैदा हुयी और बैंकों ने उसको नजरअंदाज किया और उन्हीं संकटग्रस्त खातों को बार-बार नये कर्ज देते रहे। वित्त मंत्री ने इसे ढुलमुल बैंकिंग करार दिया। उन्होंने कहा कि इसी तरह की रणनीति के चलते एक दशक पहले जरूरत से ज्यादा क्षमताओं का सृजन हुआ और हमें ऐसी स्थिति में पहुंच गये जहां, कर्ज से स्थापित परियोजनायें ऋण किस्त चुकाने की हालत में नहीं थी। उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ परियोजनाओं में धोखाधड़ी भी की गयी।
उन्होंने कहा कि उससे भी बढ़कर दूसरी गलती यह हुयी कि हमने ऋणों को नया करना शुरू किया और उसका परिणाम है कि अब हमें उनकी वसूली के लिये कोई सही रास्ता तलाशना पड़ रहा है। जेटली ने कहा कि मजबूत वृहत आर्थिक बुनियाद के बैगर लंबे समय तक उच्च आर्थिक वृद्धि दर हासिल नहीं की जा सकती। यदि हम वृहत आर्थिक कारकों को नजरअंदाज करके वृद्धि दर बढा़ने की कोशिश करते हैं तो कुछ समय बाद यही बात अर्थव्यवस्था के लिये उल्टी पड़ने लगती है।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था का प्रबंधन ठीक रखने के लिये राजकोषीय सूझबूझ के साथ आर्थिक वृद्धि हासिल करने का प्रयास होना चाहिये और ऋण वितरण की दर भी तार्किक रखी जानी चाहिये। गौरतलब है कि 17 अगस्त को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की एक समिति द्वारा वास्तविक क्षेत्र की वृद्धि दर पर जारी रिपोर्ट में आधार वर्ष 2011-12 पर आधारित नयी जीडीपी श्रृंख्ला के अनुरूप तैयार की गयी पिछले वर्षों की कड़ियों में 2006-07 में आर्थिक वृद्धि 10.8 प्रतिशत दिखायी गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार मनमोहन सिंह सरकार के दस साल के कार्यकाल में औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि 8.1 प्रतिशत रही जबकि मोदी सरकार के चार साल में यह आंकड़ा 7.3 प्रतिशत है।
इस रपट को लेकर कांग्रेस और भाजपा की ओर से अपने-अपने तर्क और दावे दिये जा रहे हैं। इसमें एक तर्क यह भी है UPA सरकार के पहले कार्यकाल में पूरी दुनिया की वृद्धि दर तेज थी। इस बीच, सांख्यिकी मंत्रालय ने कहा है कि आयोग की समिति की यह रिपोर्ट आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। अधिकृत आंकड़े बाद में जारी किये जायेंगे।