नई दिल्ली। आने वाले समय में फसलों की सेहत की निगरानी स्मार्ट ड्रोन के जरिये और खेतों की जुताई जीपीएस नियंत्रित स्वचालित ट्रैक्टरों से हो सकती है। साथ ही खेतों में कब और कितना कीटनाशक, उर्वरक का उपयोग करना है तथा मिट्टी को बेहतर बनाने के तरीके जैसी चीजें की जानकारी सही समय पर किसानों को आसानी से उपलब्ध हो सकती हैं। यह सब कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और अन्य संबंधित प्रोद्योगिकी के उपयोग से संभव होगा। नीति आयोग ने ‘कृत्रिम मेधा के लिये राष्ट्रीय रणनीति’ पर जारी परिचर्चा पत्र में कहा है कि कृत्रिम मेधा के उपयोग से खेती-बाड़ी के सभी स्तरों पर दक्षता बढ़ेगी तथा फसलों की उत्पादकता के साथ किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
इसमें गया है कि इस प्रौद्योगिकी के तहत ‘इमेज रिकॉग्नीशन’ और ‘डीप लर्निंग मॉडल’ के जरिये खेतों की तस्वीर और अन्य आंकड़े लेकर ‘मृदा स्वास्थ्य’ के बारे में पता लगाया जा सकता है और किसान उसे बेहतर करने के लिए जरूरी कदम उठा सकते हैं। इसके लिये प्रयोगशाला परीक्षण संबंधी ढांचागत सुविधा की आवश्यकता नहीं होगी।
इसके अलावा एआई प्रौद्योगिकी का उपयोग बुवाई, कीटनाशक नियंत्रण, कच्चे माल का जरूरत के हिसाब से उपयोग में किया जा सकता है। साथ ही ई-नाम (इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट), एजीमार्केट तथा मृदा स्वास्थ्य नमूने आदि के आंकड़ों के आधार पर एआई उपकरण किसानों को मांग एवं आपूर्ति का सटीक आंकड़ा उपलब्ध करा सकते हैं। इससे बिचौलियों का सफाया होगा और बेहतर जानकारी से किसानों की आमदनी बढ़ेगी वहीं खेती करना भरोसेमंद होगा।
कुल 115 पृष्ठ के इस परिचर्चा पत्र में आयोग ने कृषि के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, स्मार्ट शहर, स्मार्ट वाहन एवं परिवहन के क्षेत्रों में कृत्रिम मेधा के उपयोग पर जोर देने का फैसला किया है। उसका कहना है कि शिक्षा क्षेत्र में इस दूरगामी प्रभाव वाली प्रौद्योगिकी के उपयोग से शिक्षण-प्रशिक्षण की पहुंच बढ़ेगी और गुणवत्ता बेहतर होगा।
आयोग के अनुसार स्वास्थ्य के क्षेत्र में लोगों तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचेंगी जबकि स्मार्ट शहर एवं बुनियादी ढांचा में कुशल और बेहतर संपर्क व्यवस्था उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
आयोग के अनुसार, हालांकि कृत्रिम मेधा (एआई) के उपयोग के रास्ते में कुछ चुनौतियां हैं। इसमें एआई के उपयोग और अनुसंधान में व्यापक आधार पर विशेषज्ञता की कमी, बेहतर आंकड़ों तक पहुंच का अभाव, उच्च संसाधन लागत तथा एआई के उपयोग के लिए जागरूकता की कमी, आंकड़ों की गोपनीयता को लेकर औपचारिक नियमन का अभाव समेत निजता एवं सुरक्षा का मुद्दा तथा एआई को अपनाने को लेकर सहयोगपूर्ण रुख का अभाव शामिल हैं।
परिचर्चा पत्र में देश में एआई के क्षेत्र में अनुसंधान को गति देने के लिये दो स्तरीय ढांचा का प्रस्ताव किया गया है। पहला, मौजूदा प्रमुख शोध की बेहतर समझ विकसित करने तथा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए ‘सेंटर आफ रिसर्च एक्सीलेंस’ (सीओआरई) तथा दूसरा ‘एप्लिकेशन’ आधारित अनुसंधान को आगे बढ़ाना तथा उसके उपयोग की जिम्मेदारी के साथ ‘इंटरनेशनल सेंटर्स आफ ट्रांसफॉर्मेशनल एआई’ (आईसीटीएआई) का गठन।
रोजगार के बारे में इसमें कहा गया है प्रौद्योगिकी के रूप में यह रोजगार की प्रकृति में व्यापक बदलाव लाएगा। ऐसे में कार्यबल को समय के हिसाब से कौशल उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है। रोजगार बाजार में बदलती जरूरत के अनुसार मौजूदा कार्यबल को कौशल प्रदान करना तथा भविष्य के लिये प्रतिभा तैयार करने की आवश्यकता होगी।
परिचर्चा पत्र में यह भी कहा गया है कि आंकड़ों के विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में नए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगें। इन क्षेत्रों में इतने रोजगार सृजित होंगे जो स्वचालन के कारण नौकरी गंवाने वालों को खपा सकता है। परिचर्चा पत्र में यह भी कहा गया है कि देश में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता को देखते हुए भारत एआई के क्षेत्र में एक प्रमुख देश बन सकता है और दुनिया के 40 प्रतिशत देशों (उभरते औेर विकासशील देश) को यह प्रौदोगिकी उपलब्ध करा सकता है।
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