Startup India: स्टार्टअप एक्शन स्कीम में फायदे पाने के लिए क्या आप हैं एलीजिबल, ऐसे करें पता
यहां कुछ ऐसे सवाल हैं कि क्या वास्तव में देश में मौजूद सभी स्टार्टअप्स सरकार द्वारा घोषित फायदों को हासिल करने के लिए एलीजिबल हैं?
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान की घोषणा के बाद अधिकांश आंत्रप्रेन्योर्स उत्साहित हैं। यहां इस बात की कतई शंका नहीं है कि सरकार का यह कदम बाकई महत्वपूर्ण है, लेकिन यहां कुछ सवाल हैं कि क्या वास्तव में सभी स्टार्टअप्स घोषित फायदों को हासिल करने के लिए एलीजिबल हैं? आज हम इस लेख के माध्यम से यह जानें कि सरकार द्वारा घोषित लाभों को हासिल करने के लिए क्या क्राइटेरिया है और कौन से स्टार्टअप इन्हें हासिल कर कसते हैं।
यहां एक एलीजिबिलटी क्राइटेरिया का क्विक एनालिसिस है, यह ध्यान रखें कि नीचे दिए किया चार्ट टैक्स छूट चाहने वाले स्टार्टअप्स पर लागू होगा।
यह भी पढ़ें
Startups India Movment: स्टार्टअप्स को तीन साल तक इनकम टैक्स से छूट, सरकार बनाएगी 10 हजार करोड़ रुपए का फंड
इसके अतिरिक्त, स्टार्टअप की पहचान इन तरीकों से भी होगी
- इसे एक एंटिटी के तौर पर किसी एक प्रकार से रजिस्टर्ड होना चाहिए,
- कंपनी कानून 2013 के तहत प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के तौर पर
- इंडियन पार्टनरशिप एक्ट 1932 के तहत एक पार्टनरशिप लायबिलटी के तौर पर
- लिमिटेड लायबिलटी पार्टनरशिप एक्ट 2008 के तहत लिमिटेड लायबिलटी पार्टनरशिप
- चालू होने या रजिस्ट्रेशन की तारीख को पांच साल पूरे नहीं होने चाहिए।
- वार्षिक टर्नओवर (कंपनी एक्ट 2013 की परिभाषा के मुताबिक) किसी भी एक वित्त वर्ष में 25 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होना चाहिए।
- स्टार्टअप को इन्नोवेशन, डेवलपमेंट, डेपलॉयमेंट या नए प्रोडक्ट के कमर्शियालाइजेशन, टेक्नोलॉजी या इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी द्वारा संचालित प्रोसेस या सर्विसेस में संलग्न होना चाहिए।
- स्टार्टअप का उद्देश्य निम्न को डेवलप और कमर्शियालाइज करना होना चाहिए :
- एक नया प्रोडक्ट या सर्विस या प्रक्रिया
- मौजूदा प्रोडक्ट या सर्विस या प्रोसेस का महत्वपूर्ण सुधारात्मक रूप जो ग्राहकों या वर्कफ्लो में वैल्यू ऐड करता हो
- स्टार्टअप ऐसे नहीं होने चाहिए
- ऐसे प्रोडक्ट्स या सर्विसेस या प्रोसेस जिनमें कमर्शियालाइजेशन की क्षमता न हो
- गैर विभिन्नता वाले प्रोडक्ट्स या सर्विसेस या प्रोसेस
- ग्राहकों या वर्कफ्लो के लिए वैल्यू नहीं या सीमित वैल्यू वाले प्रोडक्ट्स या सर्विसेस या प्रोसेस
- मौजूदा बिजनेस को विभाजित या पुनर्निमाण द्वारा स्थापित नई इकाई को स्टार्टअप नहीं माना जाएगा।
- डीआईपीपी द्वारा गठित अंतर मंत्रालीय बोर्ड द्वारा प्रदत प्रमाणपत्र हासिल करने वालों को स्टार्टअप माना जाएगा, यह प्रमाणपत्र बिजनेस के इन्नोवेटिव नेचर को प्रमाणित करेगा
- भारत में पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में स्थापित किए गए इनक्यूबेटर से समर्थन हासिल करने वाले को भी स्टार्टअप माना जाएगा
- भारत सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त इनक्यूबेटर द्वारा समर्थित इकाई को स्टार्टअप माना जाएगा
- भारत सरकार द्वारा संबंधित इनक्यूबेटर से समर्थन प्राप्त करने वाले को स्टार्टअप की श्रेणी में रखा जाएगा
- सेबी के साथ रजिस्टर्ड इनक्यूबेशन फंड, एंजेल फंड, प्राइवेट इक्विटी फंड, एसक्लेरेटर, एंजेल नेटवर्क से वित्तीय मदद प्राप्त करने वालों को भी स्टार्टअप माना जाएगा
- इन्नोवेशन को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की किसी विशेष योजना के तहत वित्तीय मदद हासिल करने वालों को भी इस श्रेणी में रखा जाएगा
- भारतीय पेटेंट और ट्रेडमार्क ऑफिस द्वारा पेटेंट प्राप्त करने वाले को भी सारे फायदे मिलेंगे।
इस स्कीम के तहत गैर पात्र कंपनियों के लिए डीआईपीपी अलग से एक निगेटिव लिस्ट जारी कर सकता है। स्टार्टअप्स की लिए सरकार द्वारा घोषित लाभों को प्राप्त करने के लिए आपका प्रोडक्ट या सर्विस एकदम नया होना चाहिए या यह मौजूदा सर्विस या प्रोडक्ट का कोई महत्वपूर्ण सुधार वाला वर्जन होना चाहिए। इसे एक उदाहरण से समझते हैं, एक स्टार्टअप जो फ्लिपकार्ट या अमेजन की तरह ऑनलाइन मार्केटप्लेस डेवलप करने में लगा है। इसलिए मौजूदा समान क्षेत्र में कार्यरत नए स्टार्टअप को इस स्कीम के लिए तब तक पात्र नहीं माना जाएगा, जबतक कि उसका प्रोडक्ट मौजूदा स्टार्टअप्स द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले प्रोडक्ट्स की तुलना में ज्यादा सुधारात्मक नहीं होगा। दूसरा एलीजिबिलटी क्राइटेरिया है कि स्टार्टअप को मान्यताप्राप्त इनक्यूबेटर सेल या भारत सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त या किसी मान्यताप्राप्त फंड हाउस से वित्तीय मदद मिलनी चाहिए। यह स्टार्टअप्स के लिए एक एक आसान काम हो जाएगा। इन क्राइटेरिया के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि मौजूदा स्टार्टअप्स में से केवल 60 फीसदी ही स्टार्टअप इंडिया प्लान के तहत मिलने वाले फायदों के हकदार होंगे।