इस भारतीय ने खड़ी की दुनिया की सबसे बड़ी एयर कूलर कंपनी, 10 साल में शेयरहोल्डर्स को दिया 91,000% रिटर्न
बाकेरी ने अपने पिता से 1988 में 7,00,000 रुपए उधार लिए और एयर कूलर का बिजनेस शुरू किया। यह एसी की तुलना में सस्ता और कम बिजली खपत वाली मशीन थी।
नई दिल्ली। अचल बाकेरी यदि चाहते तो अपने लिए एक आसान राह भी चुन सकते थे। ऐसा वो इसलिए कर सकते थे क्योंकि वह भारत की सबसे पुरानी 109 करोड़ रुपए मार्केट वैल्यू वाली रियल एस्टेट कंपनी बाकेरी ग्रुप के वारिस थे। लेकिन 1986 में यूएस से एमबीए की डिग्री लेकर लौटे 26 वर्षीय बाकेरी ने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना।
56 वर्ष के हो चुके अचल बाकेरी कहते हैं कि मुझे लगता था कि रियल एस्टेट बिजनेस में और अधिक वैल्यू मैं नहीं जोड़ सकता था। वहां पहले ही अच्छी तरह स्थापित स्ट्रक्चर और हाइरेरकी थी, जबकि मैं अपने लिए चुनौतीपूर्ण काम चाहता था। इसलिए उन्होंने अपना खुद का रास्ता चुना।
बाकेरी ने अपने पिता से 1988 में 7,00,000 रुपए उधार लिए और एयर कूलर का बिजनेस शुरू किया। यह एसी की तुलना में सस्ता और कम बिजली खपत वाली मशीन थी और गर्म और शुष्क भारतीय गर्मियों में लोगों को ठंडी हवा देती थीं।
सिम्फनी में हजार रुपए की रकम हुई 12 लाख
20 जून साल 2006 में पंखे और कूलर बनाने वाली कंपनी के स्टॉक का प्राइस मात्र रुपए था जो अब बढ़कर 1200 रुपए हो गया है। इस लिहाज से इसमें हजार रुपए की रकम बढ़कर अब 12 लाख रुपए हो गई है। साल 2010 के बाद कंपनी अपने शेयरधारकों को 11 बार डिविडेंड भी दे चुकी है।
बाकेरी कहते हैं कि,
जब मैंने कूलर बनाना शुरू किया, तब एसी बहुत महंगे होते थे और एयर कूलर बहुत बड़े और भद्दे। मैंने कुछ ऐसा बनाने की सोची जो खरीदारों को आकर्षित कर सके।
अपनी स्थापना के एक साल के भीतर ही बाकेरी की कंपनी, जिसे अब सिम्फनी लिमिटेड के नाम से जाना जाता है, सफल रही और प्रॉफिट जनरेट करना शुरू कर दिया। 30 साल की अपनी इस यात्रा में यह दुनिया की सबसे बड़ी एयर-कूलर कंपनी बन गई है और इसका मार्केट कैपिटालाइजेशन 1.2 अरब डॉलर है। 2016 में बाकेरी की नेट संपत्ति 1.26 अरब डॉलर है जो उन्हें भारत का 74वां सबसे अमीर आदमी बनाती है।
सिम्फनी के शेयरहोल्डर्स को भी बहुत फायदा हुआ है। पिछले 10 सालों में इस कंपनी का शेयर 91,000 प्रतिशत उछल चुका है। 2006 में इसके एक शेयर का भाव 1.30 रुपए था, जो 20 दिसंबर 2016 को 1,180 रुपए पर ट्रेड कर रहा था।
पिता ने दिया था आइडिया
बाकेरी इस बिजनेस आइडिया के लिए सारा क्रेडिट अपने पिता अनिल बाकेरी को देते हैं। बाकेरी ने बताया कि 1987 में उनका परिवार अहमदाबाद में एक नए घर में शिफ्ट हुए, तब तक हमने कभी एयर कूलर का इस्तेमाल नहीं किया था। हमारे कंस्लटैंट ने कुछ एरिया में एयर कूलर लगाने की सलाह दी, जहां एसी नहीं लगाए जा सकते थे। लेकन यह मशीन बहुत आवाज करने वाली थी और जगह भी ज्यादा लेती थी।
रविवार की एक सुबह जब पूरा परिवार चाय के लिए एक साथ बगीचे में बैठा था, बाकेरी के पिता ने उसने कहा कि क्या वह बेहतर दिखने वाला और कम आवाज वाला एयर कूलर बना सकते हैं। अचल बाकेरी ने अहमदाबाद के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की और यूनिवर्सिटी और साउदर्न कैलीफोर्निया से एमबीए किया है। फरवरी 1988 में बाकेरी ने संस्क्रुत कम्फर्ट सिस्टम्स को लॉन्च किया, जो कि एयर कूलर बनाती थी। हमने एयर कूलर को सुंदर और हल्का बनाने के लिए प्लास्टिक का उपयोग किया ताकि यह एसी की तरह दिखे।
इसके बाद बाकेरी ने सिम्फनी ब्रांड नाम से अपना प्रोडक्ट लॉन्च किया, जिसकी कीमत 4,300 रुपए प्रति यूनिट थी। इसके लिए भारत के सबसे ज्यादा बिकने वाले अंग्रेजी दैनिक अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में फुल पेज विज्ञापन दिया गया। यह वह समय था जब एसी 35,000 रुपए में बिकता था और लोकल एयर कूलर की कीमत 2,000 रुपए थी।
धीमी सफलता
1988 की गर्मियों में मांग धीमी गति से बढ़ रही थी और कंपनी ने 1,000 यूनिट बेचे और 40 लाख रुपए की कमाई की। अभी तक इस कंपनी ने एक भी कूलर का निर्माण नहीं किया था। बाकेरी कहते हैं कि मैन्यूफैक्चरिंग एक कैपिटल और मैनेजमेंट इन्टेंसिव प्रक्रिया है और हम हमारी सोच थी कि इसे विशेषज्ञ वेंडर्स से आउटसोर्स करना ज्यादा बेहतर है।
संस्क्रुत सिम्फनी ब्रांड के तहत विभिन्न कम्पोनेंट्स को एक एयरकूलर में असेम्बल करने का काम करती थी। 1989 में कंपनी ने नए एयर कूलर की डिजाइन के लिए अहमदाबाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से कुछ ग्रेजुएट्स की भर्ती की। इससे पहले बाकेरी और उनकी छोटी सी टीम खुद ही प्रोडक्ट की डिजाइन तैयार करते थे। 1989 से 1990 के बीच कंपनी ने 3,000 कूलर बेचे, कंपनी ने अपना डिस्ट्रीब्शून बढ़ाया और नेशनल टेलीवीजन पर अक्रामक रूप से विज्ञापन करना शुरू किया। 1990 में कंपनी ने 21,700 यूनिट की बिक्री की।
1991 में अहमदाबाद में एक फैक्ट्री की स्थापना की गई और वहां असेम्बिलंग शुरू की गई। 1994 में कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट हुई और आईपीओ के जरिये 10 करोड़ रुपए से अधिक की राशि जुटाई। इस साल कंपनी ने अपना नाम बदलकर सिम्फनी कम्फर्ट सिस्टम्स कर लिया।
बड़ी गिरावट
शेयर बाजार की सफलता अपने साथ तेजी से डाइवर्सीफाइ और विस्तार का दवाब लेकर आई। चूंकि एयर कूलर की बिक्री पूरे साल नहीं की जा सकती थी, इसलिए सिम्फनी ने नए प्रोडक्ट डेवलप करने का विकल्प चुना। जल्द ही यह गीजर से लेकर वाटर प्यूरीफायर और वॉशिंग मशीन तक का निर्माण करने लगी। लेकिन इससे एयर कूलर जैसी सफलता नहीं मिली। इससे कंपनी को नुकसान होने लगा।
2002 तक सिम्फनी की नेट संपत्ति पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। इस साल कंपनी का कुल रेवेन्यू 28 करोड़ रुपए था और नेट नुकसान 31 करोड़ रुपए। 2003 में सिम्फनी ने भारत सरकार के बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन (बीआईएफआर) से संपर्क करने का फैसला किया, जो बीमार कंपनियों को उनके बिजनेस को रिस्ट्रक्चर करने में मदद करता है।
कंपनी ने अपने बिजनेस मॉडल में सुधार करना शुरू किया और अधिक डिस्ट्रीब्यूटर्स नियुक्त किए। 2006 तक कंपनी अपने डाइवर्सीफाइड बिजनेस से पूरी तरह बाहर निकल गई और अपना पूरा फोकस एयर कूलर पर लगा दिया और कंपनी फिर से सिंगल प्रोडक्ट कंपनी बन गई।
रिकवरी
2008 तक सिम्फनी ने अपना फोकस डिस्ट्रीब्यूटर्स और डीलर बेस बढ़ाने पर लगा दिया। 2007 में जहां कंपनी के पास 100 डिस्ट्रीब्यूटर्स थे, उनकी संख्या आज 800 है। 2007 में जहां 3000 डीलर थे उनकी संख्या 2016 में बढ़कर 20,000 हो गई।
भारत के एयर कूलर मार्केट में तकरीबन 50 फीसदी हिस्सेदारी सिम्फनी की है। 2008 में सिम्फनी ने इंटरनेशनल मेटल प्रोडक्ट्स कंपनी के मैक्सिकन बिजनेस का 650,000 डॉलर में अधिग्रहण किया। इससे कंपनी को नॉर्थ अमेरिकन मार्केट तक अपनी पहुंच बनाने में मदद मिली।
भारतीय एयर कूलर मार्केट अभी भी असंगठित है और 80 फीसदी बाजार पर लोकल निर्माताओं का कब्जा है। हालांकि, ऐसा अनुमान है कि यह बाजार 2015 से 2025 के बीच 19 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ रहा है। ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल द्वारा मई में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 14.3 करोड़ भारतीय परिवार गर्म और शुष्क वातावरण में रहती हैं। इनमें से केवल 8 फीसदी परिवारों के पास एयर कूलर हैं, ऐसे में ग्रोथ के लिए यहां बहुत ज्यादा अवसर है।
भारत के अलावा सिम्फनी दुनिया के कुछ बड़े देशों में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती है। 2006 में इनसे साउदी अरब और ईराक जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश किया। आज सिम्फनी 60 देशों में अपने प्रोडक्ट बेच रही है।