नई दिल्ली। बैंक खाते, सरकारी सब्सिडी से लेकर मोबाइल फोन के कनेक्शन तक के लिए जरूरी आधार योजना को नुकसानदेह मानने वाले कुछ लोगों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच 17 जुलाई से सुनवाई करेगी। देश के चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने बुधवार को इस संदर्भ में संकेत दिया। बेंच इस बात पर विचार करेगी कि इस योजना को अनिवार्य बनाना एक नागरिक के प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन है या नहीं।
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आपको बता दें के बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके हिसाब से आधार योजना नुकसानदेह है। ऐसे लोगों के अनुसार यह निजी जीवन में अनचाही घुसपैठ करती है। इस योजना से नाखुश लोगों का मानना है कि आधार के जरिए नागरिकों से एकत्र किए गए बायोमेट्रिक्स डाटा ऐसे राज्य तंत्र की याद ताजा करते हैं जिसमें नागरिकों को ऐ नंबर देकर हर समय उनकी निगरानी की जाती थी।
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आधार योजना को उस समय चुनौती दी गई थी, जब एक एग्जिक्यूटिव ऑर्डर के जरिए इसे अनिवार्य बनाया गया था। इसके बाद से इसे वैधानिक समर्थन मिला है। संसद ने एक कानून पास किया था जिसे एक्टिविस्ट्स और कुछ अन्य लोगों ने चुनौती दी है। सरकार का कहना है कि सार्वजनिक योजनाओं में गड़बड़ियों को रोकने के लिए यह योजना जरूरी है। इससे गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले करोड़ों लोगों को फायदा होगा।
इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच विचार करेगी। अगर जरूरी हुआ तो इसे नौ जजों की एक बड़ी बेंच के पास भेजा जाएगा। आधार का विरोध करने वालों ने इस योजना के जरिए नागरिकों से एकत्र किए गए इंडीविजुअल डाटा की सुरक्षा को लेकर भी आशंका जताई है। उनका कहना है कि प्राइवेट एजेंसियों को डाटा जुटाने का काम देने से इसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं है।
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