नई दिल्ली। सरकार ने संसद में बताया कि 2,071 उद्योगपतियों पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल 3.89 लाख करोड़ रुपए बकाया है। इन उद्योगपतियों ने 50 करोड़ रुपए या इससे अधिक का ऋण ले रखा है। यह धनराशि या तो बुरे ऋण या फिर गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में तब्दील हो गई है।
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि 30 जून, 2016 तक 50 करोड़ रुपए से अधिक ऋण राशि वाले एनपीए खातों की संख्या 2,071 थी, जिन्हें मिलाकर कुल 3,88,919 करोड़ रुपए की राशि बैठती है।
Bad Debt से बढ़ा सरकार का संकट, 2015-16 में 22 में से 16 सरकारी बैंकों ने नहीं दिया लाभांश
गंगवार ने कहा कि,
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुदेशों के अनुसार, प्रत्येक बैंक की अपनी वसूली नीति है, जिसमें माफी और राइट ऑफ की प्रक्रिया भी शामिल है। इस माफी के तहत आरबीआई ने मुख्यालय स्तर पर तो माफी की अनुमति दी है, जबकि शाखा स्तर पर वसूली के प्रयास जारी रहते हैं। उचित प्रावधानों के बाद लोन को राइट ऑफ किया जाता है।
- सभी कॉमर्शियल बैंकों में वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान कुल बैड लोन 8.32 लाख करोड़ रुपए रहा, जो कि वित्त वर्ष 2014-15 में 7.28 लाख करोड़ रुपए था।
- बैंकों के एनपीए बढ़ने का मुख्य कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमा सुधार और दुनिया के बाजारों में लगातार अनिश्चितता की वजह से गिरता एक्सपोर्ट है।
- गंगवार ने बताया कि नीति आयोग ने बैंकों के बैड लोन और लोन रिकवरी के लिए अलग से बैड बैंक बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं दिया है।
- सरकार ने पहले कहा था कि सार्वजनिक कंपनी जैसे एनटीपीसी और सेल को संकटग्रस्त लोन का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी दी जाएगी।
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