सार्वजनिक उपक्रमों के द्वारा स्कूलों में बनाए शौचालयों में से 11% या तो बने ही नहीं या अधूरे: CAG
सर्वे में 15 राज्यों में 2,048 स्कूलों में निर्मित 2,695 शौचालयों को शामिल किया गया । इसमें से 99 स्कूलों में शौचालय काम नहीं कर रहे थे। वहीं 72 फीसदी शौचालय में पानी की सुविधा नहीं थी।
नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय लोक उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा स्कूलों में निर्मित शौचालयों के ऑडिट में पाया गया कि उनमें से 11 प्रतिशत या तो अस्तित्व में नहीं हैं या फिर उनका आंशिक निर्माण ही हुआ है। वहीं 30 प्रतिशत साफ-सफाई, पानी नहीं होने जैसे विभिन्न कारणों से उपयोग में नहीं हैं। कैग की केंद्रीय लोक उपक्रमों द्वारा स्कूलों में शौचालयों के निर्माण पर तैयार की गई रिपोर्ट को बुधवार को संसद में पेश किया गया। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालयों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये एक सितंबर, 2014 को ‘स्वच्छ विद्यालय अभियान’ की शुरूआत की और इस संदर्भ में अन्य मंत्रालयों से सहयोग की अपील की। मानव संसाधन विभाग ने दूसरे मंत्रालयों से अपने-अपने नियंत्रण में आने वाले सीपीएसई से सरकारी स्कूलों में शौचालयों के निर्माण को लेकर परियोजना में शामिल होने के लिये कहने का आग्रह किया। मंत्रालय के अनुसार 53 लोक उपक्रमों ने इस परियोजना में हिस्सा लिया और 1,40,997 शौचालयों के निर्माण किये गये। कैग ने कहा कि बिजली मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय लोक उपक्रमों (सीपीएसई) ने 5,000-5,000 शौचालय बनाये।
इन उपक्रमों ने कुल मिलाकर 1,30,703 शौचालयों का निर्माण किया जिस पर 2,162.60 करोड़ रुपये खर्च आया। कैग ने एनटीपीसी, पावर ग्रिड, एनएचपीसी, पीएफसी, आरईसी, ओएनजीसी और कोल इंडिया द्वारा निर्मित शौचालयों से जुड़े रिकार्ड की जांच की। साथ ही 15 राज्यों में 2,048 स्कूलों में निर्मित 2,695 शौचालयों का वहां जाकर सर्वे भी किया गया। रिपोर्ट के अनुसार ऑडिट नमूने में शामिल 2,695 शौचालयों में से सीपीएसई ने 83 शौचालयों का निर्माण नहीं किया। हालांकि, उन्होंने इन शौचायलों को निर्माण में दिखाया। शेष 2,612 शौचालयों में से 200 शौचालय संबंधित स्कूलों में नहीं पाये गये। वहीं 86 शौचालय आंशिक रूप से निर्मित पाये गये। सर्वे में शामिल कुल शौचालयों में से नहीं बने और आंशिक रूप से निर्मित शौचालयों की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है। कैग के अनुसार सर्वे में शामिल कुल 1,967 स्कूल ऐसे थे जिनमें लड़के-लड़कियां दोनों पढ़ते हैं। इन स्कूलों में 99 स्कूलों में शौचालय चालू नहीं थे जबकि 436 स्कूलों में केवल एक शौचालय परिचालन में था। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘लड़कों और लड़कियों के लिये अलग शौचालय का लक्ष्य 535 स्कूलों में पूरा नहीं हुआ।’’ यह 1,967 स्कूलों का 27 प्रतिशत है। कैग के अनुसार सर्वे में शामिल 2,326 निर्मित शौचालयों में से 691 (30 प्रतिशत) का उपयोग नहीं हो पा रहा था। इसका कारण पानी का अभाव, साफ-सफाई की कमी, शौचालयों का टूटा-फूटा होना, शौचालय का इस्तेमाल अन्य कार्य के लिये करना या फिर ताला लगा होना आदि था। स्वच्छ विद्यालय अभियान के नियम के मुताबिक शौचालयों में चलता हुआ पानी होना चाहिये, हाथ धोने की सुविधा और नियमित रूप से उसका रख रखाव होना चाहिये ताकि उसका बेहतर लाभ उठाया जा सके। कैग के सर्वेक्षण के मुताबिक 2,326 निर्मित शौचालयों में से 1,679 (72 प्रतिशत) में शौचालय के अंदर पानी की सुविधा नहीं थी। वहीं 1,279 (55 प्रतिशत) में हाथ धोने की सुविधा नहीं थी। इसके साथ ही कई शौचालयों का निर्माण नियमों के अनुरूप ठीक से नहीं किया गया था जिससे उनका प्रभावी इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था।