Budget 2018: तिलहन उद्योग के लिए जरूरी है तिलहन विकास फंड, आयात शुल्क में अंतर बढ़ाने से होगा फायदा
आयात शुल्क से सरकार को जो कमाई होगी उसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल तिलहन विकास फंड के तौर पर इस्तेमाल करने की मांग
नई दिल्ली। पहली फरवरी 2018 को वित्तवर्ष 2018-19 के लिए बजट पेश होने जा रहा है और बजट से पहले देश का हर उद्योग सरकार के पास अपनी मांग रखने की कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में देश की तेल और तिलहन इंडस्ट्री के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने भी अपनी मांग रखी है। SEA सरकार से कहा है कि इस बजट में तिलहन विकास फंड सुनिश्चित किया जाए।
आयात शुल्क से सरकार को होने वाली कमाई से बनाया जाए यह फंड
SEA के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने इंडिया टीवी पैसा को बताया कि सरकार ने नवंबर में तेल और तिलहन आयात पर जो आयात शुल्क बढ़ाया है उससे सरकार को करीब 23000 करोड़ रुपए का राजस्व मिलेगा, इतनी बड़ी रकम से अगर सरकार कुछ हिस्सा तिलहन विकास फंड के लिए सुनिश्चित करती है तो इससे इंडस्ट्री के साथ तिलहन किसानों का तो भला होगा ही साथ में सरकार के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट में भी मदद मिलेगी।
तिलहन पर आयात शुल्क घटाने और खल के आयात को बढ़ावा देने की भी मांग
SEA ने इसके अलावा क्रूड और रिफाइंड वनस्पति तेल के आयात शुल्क के अंतर को कम से कम 15 प्रतिशत किए जाने की मांग भी रखी है ताकि किसानों के हितों की रक्षा हो सके। इसके अलावा SEA ने जरूरत के समय तिलहन पर आयात शुल्क घटाने की वकालत भी की है, SEA का मानना है कि इससे मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट को मदद मिलेगी। साथ में पशु चारे, पोल्ट्री फीड और मछली फीड की जरूरत को पूरा करने के लिए खल आयात पर भी आयात शुल्क कम करने की मांग की है।
खाने के तेल की जरूरत होती है आयात से पूरी
गौरतलब है कि देश में खाने के तेल की खपत का करीब 60-65 प्रतिशत हिस्सा विदेशों से आयात करना पड़ता है। घरेलू स्तर पर तिलहन की कम पैदावार की वजह से घरेलू तिलहन उद्योग खाने के तेल की मांग को पूरा करने में असमर्थ है। वनस्पति तेल उद्योग के मुताबिक देश में मौजूदा स्तर पर में जितना तेल पैदा होता है उद्योग की क्षमता उससे दोगुना तेल पैदा करने की है लेकिन तिलहन की उपलब्धता नहीं होने की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाते इसके लिए देश में तिलहन विकास फंड को निर्धारित करने की जरूरत है।