लिथियम-आयन बैटरी (Lithium Ion Battery) पर आधारित ऊर्जा भंडारण (Energy Storage) भारत को अपने ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) शमन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है, लेकिन देश में लिथियम का भंडार (Lithium Storage) बहुत कम है और यह अपने ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। इसलिए आयात निर्भरता को कम करने के लिए देश के भीतर लिथियम-आयन बैटरी के लिए एक रीसायकल इकोसिस्टम (Recycle Ecosystem) को तैयार करना बेहद जरूरी है। क्योंकि इस समय भारत दुनिया के सबसे अधिक प्रदुषण वाले देश की लिस्ट में है। अगर हम जल्द इससे बाहर निकलना चाहते हैं तो हमें ईवी इंडस्ट्री को बढ़ावा देना होगा और उसके लिए जरूरी सभी पहलुओं पर काम करना होगा।
2040 तक ऊर्जा भंडारण के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार होगा भारत
भारत चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद 2040 तक ऊर्जा भंडारण के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार होगा। सर्कुलरिटी के प्रयास न केवल मूल्य वसूली में मदद करेंगे बल्कि भारत को भू-राजनीतिक जोखिमों और पर्यावरणीय खतरों से भी बचाएंगे, जैसे कि पानी और मिट्टी के प्रदूषण, और वायु प्रदुषण जैसे बैटरी कचरे के गलत तरीके से प्रबंधन।
बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2022 के तहत होगा काम
खराब बैटरी को नवीनीकरण या रीसाइक्लिंग की ओर ले जाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने 24 अगस्त को बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2022 बनाया गया है, जो पर्यावरणीय रूप से ध्वनि तरीके से इलेक्ट्रिक वाहनों से लिथियम आयन बैटरी सहित विभिन्न प्रकार की अपशिष्ट बैटरी के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगा। मंत्रालय ने नए नियमों को अधिसूचित करते हुए कहा है कि इन नियमों की अधिसूचना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2021 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में दिया गया था, जहां पीएम ने सर्कुलर अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बढ़ावा देने के लिए कई तरह की घोषणाएं की थी।
रीसाइक्लिंग में दुनिया में सातवें नंबर पर भारत
चूंकि भारत का ईवी उत्पादन चीन से लिथियम बैटरी सामग्री के आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इसको लेकर संसदीय स्थायी समिति ने भी पिछले साल सिफारिश की थी कि सरकार बैटरी कच्चे माल के अन्य स्रोतों का पता लगाए ताकि उनकी निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। इस मामले में भारत इस समय दुनिया में सातवें नंबर पर है। पहले स्थान पर रीसाइक्लिंग में चीन है फिर जर्मनी, अमेरिका और फ्रांस हैं। चीन में प्रत्येक साल 1,88,000 मिलियन टन रीसाइक्लिंग होती है जबकि भारत में ये आकंड़ा सिर्फ 10,750 मिलियन टन है।
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