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Hindi News महाराष्ट्र जब गडकरी ने कमरे में बंद करके सुपारी पत्रकार को पिटवाया, अगले दिन से बंद हो गया अखबार, केंद्रीय मंत्री ने सुनाई आपबीती

जब गडकरी ने कमरे में बंद करके सुपारी पत्रकार को पिटवाया, अगले दिन से बंद हो गया अखबार, केंद्रीय मंत्री ने सुनाई आपबीती

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सुपारी पत्रकार को कमरे में बंद करके अपने अधिकारियों से पिटवाया था। गडकरी ने कहा कि सुपारी पत्रकार से उनके ऑफिस के अधिकारी बहुत ज्यादा परेशान रहते थे।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी- India TV Hindi Image Source : PTI केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने शनिवार को नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा की सुपारी पत्रकारों की कमी नहीं है, जो पत्रकार राइट टू इनफॉरमेशन (RTI) के तहत काम करते हैं उन्होंने मर्सिडीज की गाड़ियां तक खरीद ली हैं। नागपुर के प्रेस क्लब में आयोजित स्वर्गीय अनिल कुमार पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में नितिन गडकरी ने यह बयान दिया है।

पत्रकारों ने मर्सिडीज गाड़ियां खरीद लीं

गडकरी ने कहा कि वह पत्रकारिता को लोकतंत्र का स्तंभ मानते हैं, जिस तरीके से पत्रकार होते हैं, उसी तरीके से सुपारी पत्रकारों की कमी नहीं है। आजकल राइट टू इनफॉरमेशन (RTI) मिल गया है। अच्छा हुआ है, लेकिन उसके चलते लोगों ने मर्सिडीज गाड़ियां खरीद ली हैं।  जो पत्रकार राइट टू इनफॉरमेशन (RTI) में काम करते हैं। 

दरवाजा बंद करके पत्रकार की हुई पिटाई

गडकरी ने कहा, 'एक पत्रकार जब मैं मंत्री था। वह पेपर निकालता था। वह पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को ब्लैकमेल करता था। एक हमारे अधिकारी थे, उन्होंने मुझसे कहा कि यह लोग हमें ब्लैकमेल करते हैं। आप ध्यान दीजिए। मैंने कहा कि मैं ध्यान नहीं दूंगा। आप लोग ध्यान दो। मैंने कहा कि जब वह ऑफिस आता है, तो उसको दरवाजे के अंदर बंद कीजिए। उसको ठीक से मारिए। बस खुन नहीं निकलने देना और उन लोगों ने ऐसा ही किया। उसके बाद से पत्रकार का अखबार निकलना बंद हो गया।'

पत्रकार मांगते हैं एडवर्टाइजमेंट

गडकरी ने एक और पुराना वाकया सुनाते हुए कहा, 'मराठवाड़ा में एक पत्रकार ऐसा था कि मेरा अधिकारी वहां पर डरता था। मैं गेस्ट हाउस गया तो उसे मेरे अधिकारी ने कहा कि उसकी यहां से बदली कर दो, यहां पर पत्रकार एडवर्टाइजमेंट मांगते हैं। एक बार दो बार दिया। हर बार में कहां से दूं।'

पत्रकारों के संगठन को समझना चाहिए

गडकरी ने कहा कि पत्रकारों के संगठन को समझना चाहिए कि अपने अथॉरिटी कार्ड किसको देना चाहिए किसको नहीं। ऐसे भी पत्रकार रहे हैं जो अपने वसूलों के लिए कटिबंध हैं। इमरजेंसी के दौरान उन्हें  जेल भी जाना पड़ा, लेकिन अपनी पत्रकारता का आदर्श नहीं छोड़े।