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Hindi News महाराष्ट्र मोहन भागवत के बयान पर शुरू हो गई है राजनीति, जानिए महाराष्ट्र के नेताओं ने क्या कहा?

मोहन भागवत के बयान पर शुरू हो गई है राजनीति, जानिए महाराष्ट्र के नेताओं ने क्या कहा?

मणिपुर को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत के दिए बयान पर महाराष्ट्र में सियासत तेज हो गई है। शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत और प्रवक्ता आनंद दुबे ने भागवत को जवाब दिया है। जानिए क्या कहा है?

संघ प्रमुख मोहन भागवत- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO-PTI संघ प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर को लेकर सोमवार को एक बयान दिया। संघ प्रमुख ने कहा,'मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' भागवत के इसी बयान पर विपक्षी नेताओं ने सरकार और संघ प्रमुख को घेरना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र में शिवसेना (UBT) के प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा कि मणिपुर एक साल से शांति का इंतजार कर रहा है। मोहन भागवत को ये बात आज जाकर समझ में आई है। 

इसके साथ ही शिवसेना (UBT) के प्रवक्ता ने सवाल पूछते हुए कहा कि हम तो कबसे यह मांग रहे हैं कि केंद्र में बैठी डबल इंजन की सरकार इस मुद्दे पर ध्यान दे, लेकिन मणिपुर को लेकर कुछ नहीं किया गया। अब आप ही लोग (संघ) बताएं कि मणिपुर का ख्याल रखा जाए।

संजय राउत और सुप्रिया सुले ने भी दी प्रतिक्रिया

संघ प्रमुख भागवत के मणिपुर वाले बयान पर शिवसेना नेता संजय राउत ने भी प्रतिक्रिया दी है। उद्धव गुट के शिवसेना नेता राउत ने कहा कि सरकार तो उनके आशीर्वाद से चल रही है, बोलने से क्या होता है?  इसके साथ ही एनसीपी (शरद पवार गुट) की नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि वह भागवत के बयान का स्वागत करती हैं, क्योंकि मणिपुर भारत का हिस्सा है। जब हम अपने लोगों को इतना कष्ट सहते हुए देखते हैं, तो सभी के लिए परेशान करने वाला होता है। सुले ने कहा कि मणिपुर को विश्वास दिलाया जाए कि बंदूक से हल नहीं होता है।

राष्ट्र निर्माण पर किया जाए ध्यान केंद्रित-भागवत

बता दें कि सोमवार नागपुर के एक कार्यक्रम में मणिपुर मुद्दे के साथ ही संघ प्रमुख भागवत ने कई प्रमुख मुद्दों पर अपनी राय रखी। भागवत ने कहा कि अब चुनाव खत्म हो चुके हैं। अब सारा ध्यान राष्ट्र निर्माण पर केंद्रित होना चाहिए। आरएसएस के एक कार्यक्रम में बोलते हुए भागवत ने नई सरकार और विपक्ष को भी सलाह दी। इसमें उन्होंने संकेत दिया कि चुनाव और शासन दोनों के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव किया जाना चाहिए।