7 लाख के इनामी नक्सली देवा ने किया आत्मसमर्पण, कहा- जंगल की जिंदगी से बड़ा कोई दर्द नहीं
आत्मसमर्पण करने के बाद देवा ने बताया कि जंगल की जिंदगी से बड़ा कोई दर्द नहीं है। कहीं खून खराबा तो कहीं धमाके होते रहते हैं। दो वक्त की रोटी मिलना भी मुश्किल रहता है।
महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में सात लाख के इनामी नक्सली देवा ने आत्मसमर्पण किया है। 27 साल का देवा बचपन में ही नक्सलियों के दल में शामिल हो गया था। उसे अर्जुन, राकेश, सुमडो मुडाम के नाम से भी जाना जाता है। वह तांडा दलम, मलाजखंड दलम और पामेड प्लाटून-9/ प्लाटून पार्टी कमेटी का मेंबर था। देवा छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में गुंडम सुटबाईपारा गांव का रहने वाला था। लंबे समय तक नक्सलवादियों के बीच रहने के बाद वह संगठन में हो रहे उत्पीड़न और यातना से तंग आ गया था। ऐसे में उसने जिला पुलिस बल के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया।
माओवादियों के झांसे में आकर उठाई बंदूक
देवा के गांव में हथियारबंद नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता था। इस वजह से वह माओवादियों के झांसे आ गया और बचपन में ही नक्सली आंदोलन में शामिल हो गया। उसने बाल संगठन में कार्य किया। वर्ष 2014 में वह पामेड दलम में भर्ती हुआ और हाथ में बंदूक उठा ली। पामेड दलम में 6 माह तक काम करने के बाद 2014 के अंत में उसने अबुझमाड एरिया में अढ़ाई माह की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 2015 में उसे माओवादियों के इलाके बस्तर से एम.एम.सी. (महाराष्ट्र- मध्यप्रदेश- छत्तीसगढ़) जोन भेजा गया। उसने 2015-16 में तांडा दलम और 2016-17 में मलाजखंड दलम में सक्रिय भूमिका निभाई। इस दौरान वह मलाजखंड क्षेत्र के डी.वी.सी.एम. चंदू उर्फ देवचंद के बॉडीगार्ड के तौर पर काम करता था।
12 मुठभेड़ में शामिल रहा
2018 में उसे वापस दक्षिण बस्तर इलाके में भेज दिया गया, जहां सितंबर 2019 तक उसने पामेड प्लाटून क्र. 9 में प्लाटून दलम सदस्य के रुप में काम किया। देवा 2014 से 2019 तक नक्सली संगठन का हिस्सा रहा और इस दौरान एक दर्जन से ज्यादा मुठभेड़ का हिस्सा बना। उसने टिपागड़ फायरिंग (गड़चिरोली), झिलमिली काशीबहरा बकरकट्टा फायरिंग (राजनंदगांव), झिलमिली फारेस्ट कर्मचारी से मारपीट व चौकी जलाना, हत्तीगुडा घोडापाठ फायरिंग (राजनंदगांव), किस्टाराम ब्लास्ट (सुकमा), पामेड फायरिंग (बिजापुर) में पुलिस के साथ मुठभेड़ की।
सीनियर से परेशान होकर छोड़ा नक्सलवाद
सीनियर कैडर की मनमानी, फंड के नाम पर पैसों की लूट, झूठी नीतियां, धोखे, प्रलोभन और हिंसा में माओवादी नेताओं का असली चेहरा सामने आने के बाद देवा ने नक्सली विचारधारा से किनारा करते हुए आत्मसमर्पण करने का फैसला किया। देवा ने कहा कि, माओवादी नेता और संगठन के वरिष्ठ कैडर जो ऊगाही से पैसा (फंड) इकट्ठा करते हैं। उसे दलम के कल्याण पर खर्च ना करते हुए खुद पर खर्च करते हैं, पारिवारिक सदस्य या रिश्तेदारों पर कोई भी अड़चन आने पर किसी भी प्रकार की कोई आर्थिक मदद नहीं की जाती। दलम में शामिल सदस्यों को दो टाइम का नियमित भरपेट भोजन नसीब नहीं होता, जंगल का जीवन बेहद कठिन है और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
पुलिस सबसे करीबी दुश्मन
देवा ने बताया कि सुरक्षा बल नक्सल विरोधी अभियान के तहत जंगल में कोबिंग ऑपरेशन चलाते हैं, जिससे हमेशा पुलिस की गोली और मौत का डर बना रहता है। वरिष्ठ कैडर पुलिस खबरी के संशय में निरपराधों, आदिवासी बंधुओं और सामान्य नागरिकों को मारने के लिए कहते हैं। ‘नक्सलवाद उन्मूलन नीति’ के तहत महाराष्ट्र शासन की आत्मसमर्पण योजना से प्रभावित होकर उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
(गोंदिया से रवि आर्य की रिपोर्ट)