मुंबई: बम्बई हाई कोर्ट ने 23 साल की अविवाहित महिला को ये अनुमति दी है कि वह 20 हफ्ते से अधिक के गर्भ को खत्म कर सकती है। इस दौरान कोर्ट ने ये भी कहा कि विवाहित महिलाओं को इस तरह की अनुमति पर प्रतिबंध लगाने का मतलब होगा- कानून की छोटी व्याख्या करना।
कोर्ट ने क्या कहा?
खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की छोटी व्याख्या कानूनी प्रावधान को अविवाहित महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण बना देगी और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करेगी। बता दें कि एक महिला ने कोर्ट से अपना बच्चा गिराने की इजाजत मांगी थी। महिला का कहना था कि वह निजी और आर्थिक वजहों से ये बच्चा गिराना चाहती है।
न्यायमूर्ति सारंग कोटवाल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने अविवाहित महिला की याचिका का महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस आधार पर विरोध किये जाने पर सात अक्टूबर को आपत्ति जताई कि याचिकाकर्ता उन महिलाओं की निर्दिष्ट श्रेणी में नहीं आती है, जो 20 सप्ताह से अधिक समाप्त करने के लिए मजबूर कर सकती है।
क्या है नियम
दरअसल ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम’ (एमटीपीए) नियमावली के नियम 3-बी के तहत, केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को 24 हफ्ते का बच्चा गिरानी की इजाजत है। जिसमें यौन उत्पीड़न पीड़िता, नाबालिग, विधवा या तलाकशुदा, शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग महिलाएं और भ्रूण संबंधी असामान्यताएं शामिल हैं।
महिला ने अपनी याचिका में क्या कहा?
महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि उसने सहमति से यौन संबंध बनाए थे, जिसकी वजह से वह प्रेगनेंट हो गई। लेकिन उसके पास बच्चे का पालन पोषण करने के लिए पैसे नहीं हैं। सितंबर 2024 में महिला 21 हफ्ते की प्रेगनेंट थी और राज्य-संचालित जेजे अस्पताल ने उसे बच्चा गिराने के लिए अदालत की मंजूरी लेने की सलाह दी। (इनपुट: भाषा)