Maharashtra Political Crisis: शिवसेना (Shiv Sena) सुप्रीमो उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने जब एनसीपी (NCP) और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई, और मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह कांटों का ताज पहन रहे हैं। उद्धव ने बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और उनका गठबंधन आसानी से बहुमत के आंकड़े को पार कर गया था, लेकिन मुख्यमंत्री पद के बंटवारे के मुद्दे पर उद्धव ने बीजेपी को छोड़ ऐसे 2 दलों के साथ हाथ मिला लिया, जिससे उनकी पार्टी के अधिकांश लोगों के दिल नहीं मिलते थे। जिस दिन उद्धव कांग्रेस और एनसीपी के साथ गए, उसी दिन शिवसेना का हिंदुत्व (Hindutva) पर दावा कमजोर सा हो गया।
उद्धव के सीएम बनते ही पड़े बगावत के बीज
उद्धव ठाकरे से एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की बगावत के कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहला तो यही कि जब उद्धव ने बीजेपी से नाता तोड़ा, और MVA के घटक दलों ने शिवसेना को सीएम पद देने की बात कही, तो शिंदे को लगा कि महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री वही होंगे। दरअसल, तब तक यह एक अघोषित नियम था कि ठाकरे परिवार का कोई भी शख्स सरकार में कोई पद ग्रहण नहीं करेगा। लेकिन उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बन गए और शिंदे के ख्वाबों पर पानी फिर गया। उद्धव कहते हैं कि पवार ने उनको सीएम बनने के लिए मनाया था, लेकिन कारण कुछ भी रहा हो, उनका सीएम बनना शिवसेना में बगावत के बीज बो गया।
पवार की चाल में फंस गए शिवसेना सुप्रीमो?
कुछ सियासी जानकारों का मानना है कि शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को अपनी चाल में फंसा लिया। उनका कहना है कि उद्धव ठाकरे भले ही मुख्यमंत्री थे, सरकार तो असल में शरद पवार ही चला रहे थे। महा विकास अघाड़ी की सरकार में एनसीपी नेताओं के दबदबे से न सिर्फ शिवसेना के, बल्कि कांग्रेस के नेता भी परेशान थे। बगावत के बाद शिवसेना के कुछ विधायकों की बातों से पता चलता है कि उद्धव अपनों को नजरअंदाज करके गैरों के कामों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे। वहीं, विधायकों ने उद्धव के किसी पर्सनल एजेंडे की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा कि व्यक्तिगत मामलों के लिए पार्टी की बलि चढ़ाना कहां तक उचित है।
इसलिए अलग है शिवसेना की यह बगावत
ऐसा नहीं है कि शिवसेना में पहली बार बगावत हुई है। इससे पहले भी कभी छगन भुजबल, कभी नारायण राणे तो कभी राज ठाकरे ने शिवसेना को चोट पहुंचाने की कोशिश की थी। लेकिन उस समय शिवसेना के पास बाल ठाकरे जैसा करिश्माई नेता था, इसलिए पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ। वहीं, उद्धव के खिलाफ बगावत काफी बड़ी है, और पार्टी के अधिकांश विधायक उनका साथ छोड़ चुके हैं। कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने की वजह से उनके 'हिंदू हृदय सम्राट' की इमेज पर भी तगड़ी चोट लगी है। यही वजह है कि जो शिवसैनिक कभी ठाकरे परिवार के खिलाफ मुंह नहीं खोलते थे, आज इतनी बड़ी बगावत का ऐलान कर चुके हैं।
तो क्या उद्धव के लिए बंद हुए सारे दरवाजे?
सियासत में कुछ भी अंतिम सत्य नहीं होता, लेकिन हालिया परिस्थितियों को देखकर लगता है कि अब उद्धव के लिए अपनी साख वापस पाना काफी मुश्किल है। शिंदे की बगावत ने न सिर्फ सरकार को, बल्कि ठाकरे परिवार की साख को भी काफी चोट पहुंचाई है। आम जनमानस में शिवसेना अब हिंदुत्व की ध्वजवाहक के रूप में अपना स्थान खो चुकी है। यही वजह है कि तमाम शिवसैनिक अपने भविष्य को लेकर इतने परेशान हुए कि उन्हें बगावत का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। यदि शिवसेना के दोनों धड़ों में सुलह हो भी जाती है, तो उद्धव और ठाकरे परिवार को पुरानी साख हासिल नहीं होगी, और यह उनके लिए दरवाजों के लिए बंद होने के जैसा ही है।