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Hindi News महाराष्ट्र Maharashtra Political Crisis: शिवसेना विधायक संजय शिरसाट ने उद्धव को लिखी चिट्ठी में बताया बगावत का कारण

Maharashtra Political Crisis: शिवसेना विधायक संजय शिरसाट ने उद्धव को लिखी चिट्ठी में बताया बगावत का कारण

औरंगाबाद से विधायक संजय शिरसाट ने चिट्ठी में लिखा है कि हम पार्टी के विधायक थे, लेकिन हमें कभी बंगले में सीधे प्रवेश नहीं मिला।

Maharashtra Political Crisis, Sanjay Shirsat, Shiv sena, Sharad Pawar, Uddhav Thackeray- India TV Hindi Image Source : PTI Maharashtra CM Uddhav Thackeray.

Highlights

  • संजय शिरसाट ने लिखा है कि उद्धव सिर्फ NCP, कांग्रेस के लोगों के लिए उपलब्ध रहते थे।
  • विधायक होकर भी कभी बंगले में सीधे प्रवेश नहीं मिला, मान-मनौव्वल करनी पड़ती थी: शिरसाट
  • संजय शिरसाट ने लिखा है कि शिंदे ने हमारे क्षेत्र की हर समस्या सुनी, और उसका समाधान निकाला।

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में मची सियासी हलचल के बीच शिवसेना विधायक संजय शिरसाट की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी चिट्ठी चर्चा में आ गई है। संभाजीनगर (वेस्ट) यानी कि औरंगाबाद से शिवसेना विधायक संजय शिरसाट ने उद्धव को लिखी चिट्ठी में बगावत के कारणों पर प्रकाश डाला है। चिट्ठी की भाषा से लग रहा है कि शिवसेना में बगावत का सबसे बड़ा कारण उद्धव का अपने विधायकों के लिए उपलब्ध न हो पाना, और पवार के निर्देशों पर काम करना रहा है।

‘पिछले 2.5 वर्षों से बंद था वर्षा बंगले का दरवाजा’
शिरसाट ने चिट्ठी में लिखा है कि वर्षा बंगले को खाली करते समय आम लोगों की भीड़ देखकर उन्हें खुशी हुई, लेकिन पिछले ढाई सालों से इस बंगले के दरवाजे बंद थे। उन्होंने लिखा है, ‘हमें आपके (उद्धव के) आसपास रहने वाले, और सीधे जनता से न चुनकर विधान परिषद और राज्यसभा से आने वाले लोगों का आपके बंगले में जाने के लिए मान-मनौव्वल करना पड़ता था। ऐसे स्वघोषित चाणक्य के चलते राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में क्या हुआ यह सबको पता है। हम पार्टी के विधायक थे, लेकिन हमें विधायक होकर भी कभी बंगले में सीधे प्रवेश नहीं मिला।’

‘मंत्रालय के दफ्तर में सीएम सबसे मिलते थे लेकिन...’
शिरसाट ने लिखा, ‘छठी मंजिल पर मंत्रालय के दफ्तर में सीएम सबको मिलते थे, लेकिन हमारे लिए कभी यह प्रश्न नहीं आया क्योंकि आप कभी मंत्रालय ही नहीं गए। आम लोगों के कामों के लिए हमें घंटों बंगले के गेट के बाहर खड़ा रहना पड़ता था। फोन करने पर उठाया नहीं जाता था, अंदर एंट्री नहीं होती थी, और आखिर में हम थककर चले जाते थे। 3 से 4 लाख लोगों के बीच से चुनकर आने वाले विधायक का ऐसा अपमान क्यों किया जाता था? यह हमारा सवाल है, यही हाल हम सारे विधायकों का है।’

‘आपके पास पहुंचने का कभी मौका नहीं दिया गया’
शिरसाट ने अपनी चिट्ठी में आगे लिखा, ‘आपके आसपास के लोगों ने कभी हमारी व्यथा नहीं सुनी। आपके पास पहुंचने का कभी मौका नहीं दिया गया। उसी समय हमें एकनाथ शिंदे जी का साथ मिला। शिंदे ने हमारे क्षेत्र की हर समस्या सुनी, चाहे वह फंड की हो या जनता की, और उसका समाधान निकाला। एनसीपी कांग्रेस से जो समस्याएं हो रही थीं, शिंदे उसे भी सुनते थे, ह करते थे। विधायकों के हक के लिए हमने शिंदे साहब का साथ दिया।’


‘हमें अयोध्या जाने से फोन करके क्यों रोका गया?’
शिरसाट ने लिखा, ‘हिंदुत्व, अयोध्या, राम मंदिर, ये सब हमारे, शिवसेना के मुद्दे थे, लेकिन जब आदित्य जब अयोध्या जा रहे थे, तो हमें फोन कर क्यों रोका गया? विधायकों को फोन कर यह क्यों कहा गया कि अयोध्या मत जाओ? आपने शिंदे साहब को फोन कर कहा कि विधायकों को लेकर अयोध्या न जाएं, जो जा रहे हैं उन्हें एयरपोर्ट से वापस लाएं, जबकि कई लोगों का चेक-इन हो गया था। शिंदे साहब ने बताया कि आपका फोन है, हमने सारा समान लिया और वापस घर आ गये।’

‘कांग्रेस, NCP के लोग आपसे बराबर मिलते थे, लेकिन...’
शिरसाट ने लिखा कि राज्यसभा चुनाव में हमारा एक भी वोट नहीं फूटा था, फिर विधान परिषद चुनाव में हमपर इतना अविश्वास क्यों दिखाया गया कि हमें अयोध्या नहीं जाने दिया गया। उन्होंने लिखा, ‘जब हमें वर्षा पर मिलने का समय नहीं दिया जाता था, तब कांग्रेस एनसीपी के लोग आपसे बराबर मिलते थे, निधि मंजूर कराते थे, और उसकी चिट्ठी नचाते थे कि उनकी निधि मंजूर हो गई। वे भूमि-पूजन, उद्घाटन करते थे, सोशल मीडिया पर आपके साथ फोटो वायरल करते थे। लोग हमसे पूछते कि मुख्यमंत्री अपना है तो हमें निधि क्यों नहीं मिल रही, विरोधियों को निधि मिल जाती है?’

‘आप मिलते नहीं थे, हम मतदाताओं को क्या जवाब देते?’
शिरसाट ने आगे लिखा, ‘आप हमसे मिलते ही नहीं थे, हम मतदाताओं को क्या जवाब देते? यह सोचकर हमारा मन विचलित होता था। इन सब कठिन प्रश्नों के समय एकनाथ शिंदे साहब का दरवाजा हमेशा हमारे लिए खुला रहा, क्योंकि वह बालासाहेब और आनंद दिघे के हिंदुत्व को मानने वाले हैं, आज भी हैं और कल भी रहेंगे। इस विश्वास के साथ हम शिंदे साहब के साथ हैं। कल आपने जो बोला वह काफी भावनात्मक था, लेकिन उसमे मूल प्रश्न का उत्तर नहीं था। इसलिये हमारी भावनाएं आप तक पहुंचाने के लिए ये चिट्टी लिख रहा हूं।’