Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में शिवसेना से विधायकों का टूटना जारी है। अपनी सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रहे परेशान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बागी विधायकों से बाचतीच के लिए दो सहयोगियों मिलिंद नार्वेकर और रविंद्र फाटक को सूरत भेजा था उनमें से एक विधायक अब शिंदे का साथ मिल गए हैं। जिस रविंद्र फाटक (Ravindra Phatak) को उद्धव ठाकरे ने दूत बनाया वो भी शिंदे कैंप में शामिल हो गए हैं। फाटक के साथ 2 और विधायक संजय राठौड़ और दादाजी भूसे भी गुवाहाटी रवाना हो रहे हैं।
आपको बता दें कि रविंद्र फाटक को ही उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को मनाने सूरत भेजा था और फाटक ने ही उद्धव की बात शिंदे से कराई थी। रविन्द्र फाटक ठाणे के ही रहने वाले है और एकनाथ शिंदे के पड़ोसी भी हैं। ये एकनाथ शिंदे को समझाने गए थे लेकिन एकनाथ ने इन्हें ही अब अपने पाले में मिला लिया। महाराष्ट्र की उठापटक के बीच शिवसेना के तीन और बागी विधायक गुवाहाटी रवाना हो रहे हैं।
शिंदे के फोटो फ्रेम ने उद्धव को सरेंडर के लिए किया मजबूर
इस बीच एकनाथ शिंदे के एक फोटो फ्रेम ने उद्धव ठाकरे को सरेंडर के लिए मजबूर कर दिया है। गुवाहाटी के होटल से आए इस फोटो में 42 विधायक एक साथ बैठे हैं। शिंदे के इस शक्ति प्रदर्शन के आगे उद्धव ने आज आत्म-समर्पण कर दिया। संजय राउत जो कल तक धमकी दे रहे थे अब विधायकों को मनाने के लिए महाविकास अघाड़ी छोड़ देने का भी ऑफर दे रहे हैं। उद्धव ठाकरे की चिंता सिर्फ इतनी नहीं है कि कुर्सी चली जाएगी उन्हें डर है कि जैसे बंगला चला गया, एकनाथ शिंदे कहीं पार्टी का सिंबल तीर-कमान भी न छीन लें। अभी सिर्फ विधायक ही छोड़कर गए हैं पार्टी के सांसद भी एग्जिट मोड में हैं। अपने राजनीतिक करियर में उद्धव ठाकरे के लिए ये सबसे बड़ा संकट है।
‘पिछले 2.5 वर्षों से बंद था वर्षा बंगले का दरवाजा’
सियासी हलचल के बीच शिवसेना विधायक संजय शिरसाट की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी चिट्ठी चर्चा में आ गई है। संभाजीनगर (वेस्ट) यानी कि औरंगाबाद से शिवसेना विधायक संजय शिरसाट ने उद्धव को लिखी चिट्ठी में बगावत के कारणों पर प्रकाश डाला है। चिट्ठी की भाषा से लग रहा है कि शिवसेना में बगावत का सबसे बड़ा कारण उद्धव का अपने विधायकों के लिए उपलब्ध न हो पाना, और पवार के निर्देशों पर काम करना रहा है।
शिरसाट ने चिट्ठी में लिखा है कि वर्षा बंगले को खाली करते समय आम लोगों की भीड़ देखकर उन्हें खुशी हुई, लेकिन पिछले ढाई सालों से इस बंगले के दरवाजे बंद थे। उन्होंने लिखा है, ‘हमें आपके (उद्धव के) आसपास रहने वाले, और सीधे जनता से न चुनकर विधान परिषद और राज्यसभा से आने वाले लोगों का आपके बंगले में जाने के लिए मान-मनौव्वल करना पड़ता था। ऐसे स्वघोषित चाणक्य के चलते राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में क्या हुआ यह सबको पता है। हम पार्टी के विधायक थे, लेकिन हमें विधायक होकर भी कभी बंगले में सीधे प्रवेश नहीं मिला।’
‘मंत्रालय के दफ्तर में सीएम सबसे मिलते थे लेकिन...’
शिरसाट ने लिखा, ‘छठी मंजिल पर मंत्रालय के दफ्तर में सीएम सबको मिलते थे, लेकिन हमारे लिए कभी यह प्रश्न नहीं आया क्योंकि आप कभी मंत्रालय ही नहीं गए। आम लोगों के कामों के लिए हमें घंटों बंगले के गेट के बाहर खड़ा रहना पड़ता था। फोन करने पर उठाया नहीं जाता था, अंदर एंट्री नहीं होती थी, और आखिर में हम थककर चले जाते थे। 3 से 4 लाख लोगों के बीच से चुनकर आने वाले विधायक का ऐसा अपमान क्यों किया जाता था? यह हमारा सवाल है, यही हाल हम सारे विधायकों का है।’