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Hindi News महाराष्ट्र Maharashtra Widow Ritual Ban: पति की मौत के बाद नहीं हटेगा मंगलसूत्र और सिंदूर, महाराष्ट्र के इस गांव में 'विधवा अनुष्ठान' पर प्रतिबंध

Maharashtra Widow Ritual Ban: पति की मौत के बाद नहीं हटेगा मंगलसूत्र और सिंदूर, महाराष्ट्र के इस गांव में 'विधवा अनुष्ठान' पर प्रतिबंध

महाराष्ट्र में कोल्हापुर जिले के एक गांव ने समाज सुधारक राजा राजर्षि छत्रपति साहू महाराज के 100वें पुण्यतिथि वर्ष में अपने सभी निवासियों को पति के अंतिम संस्कार के बाद महिला द्वारा अपनाई जाने वाली उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने का समर्थन करने का आह्वान किया, जो दर्शाता है कि वह (महिला) एक विधवा है।

Maharashtra's Kolhapur village bans widow ritual- India TV Hindi Image Source : REPRESENTATIONAL IMAGE Maharashtra's Kolhapur village bans widow ritual

Highlights

  • महाराष्ट्र में एक गांव ने की सराहनीय पहल
  • महिला के विधवा होने की प्रथाओं पर प्रतिबंध
  • चूड़ियां तोड़ना, सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं हटेगा

Maharashtra Widow Ritual Ban: महाराष्ट्र में कोल्हापुर जिले के एक गांव ने समाज सुधारक राजा राजर्षि छत्रपति साहू महाराज के 100वें पुण्यतिथि वर्ष में अपने सभी निवासियों को पति के अंतिम संस्कार के बाद महिला द्वारा अपनाई जाने वाली उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने का समर्थन करने का आह्वान किया, जो दर्शाता है कि वह (महिला) एक विधवा है।

विधवा अनुष्ठान को बताया ''अपमानजनक''

कोल्हापुर जिले की शिरोल तहसील के हेरवाड़ गांव की ग्राम पंचायत के सरपंच सुरगोंडा पाटिल ने कहा कि महिलाओं के चूड़ियां तोड़ने, माथे से 'कुमकुम' (सिंदूर) पोंछने और विधवा के मंगलसूत्र को हटाने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए चार मई को एक प्रस्ताव पारित किया गया। उन्होंने ''पीटीआई-भाषा'' को बताया कि सोलापुर की करमाला तहसील में महात्मा फुले समाज सेवा मंडल के संस्थापक-अध्यक्ष प्रमोद ज़िंजादे ने पहल करते हुए ग्राम पंचायत को इस ''अपमानजनक'' तरीके पर प्रतिबंध लगाने के वास्ते एक मजबूत प्रस्ताव पारित करने के लिए प्रोत्साहित किया। 

हृदयविदारक दृश्य देखकर ठाना

पाटिल ने कहा, ''हमें इस प्रस्ताव पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि इसने हेरवाड़ को अन्य ग्राम पंचायतों के लिए एक मिसाल के तौर पर पेश किया, खासकर जब हम साहू महाराज की 100वीं पुण्यतिथि मना रहे हैं, जिन्होंने महिलाओं के उद्धार के लिए काम किया।'' ज़िंजादे ने ''पीटीआई-भाषा'' से बात करते हुए कहा, ''कोविड-19 की पहली लहर में, हमारे एक सहयोगी की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। उनके अंतिम संस्कार के दौरान, मैंने देखा कि कैसे उनकी पत्नी को चूड़ियां तोड़ने, मंगलसूत्र हटाने और सिंदूर पोंछने के लिए मजबूर किया गया था। इससे महिला का दुख और अधिक बढ़ गया। यह दृश्य हृदयविदारक था।'' 

खुद की पत्नी के लिए स्टाम्प पेपर पर घोषणा

ज़िंजादे ने बताया कि इस तरह की प्रथा को रोकने का फैसला करते हुए उन्होंने इस पर एक पोस्ट लिखने के बाद गांव के नेताओं और पंचायतों से संपर्क किया और कई विधवाओं से इस पर अच्छी प्रतिक्रिया मिलने पर उन्हें खुशी हुई। ज़िंजादे ने कहा, ''अपनी ओर से एक उदाहरण स्थापित करने के लिए, मैंने स्टाम्प पेपर पर घोषणा की कि मेरी मृत्यु के बाद, मेरी पत्नी को इस प्रथा के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। दो दर्जन से अधिक पुरुषों ने मेरी इस घोषणा का समर्थन किया। तब हेरवाड़ ग्राम पंचायत मेरे पास पहुंची और कहा कि वे इस पर एक प्रस्ताव पारित करेंगे।'' महिला स्वयं सहायता समूह के साथ कार्यरत अंजलि पेलवान (35) का कहना है कि विधवा होने के बावजूद वे समाज में स्वतंत्र रूप से गहने पहनकर घूमती हैं। उन्होंने बताया ''हमने राज्य के मंत्री राजेंद्र यद्राकर को विधवाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की मांग की गई है।''