एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अधिकारी की पत्नी और बेटियां शिवसेना में शामिल, एकनाथ शिंदे ने दिलाई सदस्यता
प्रदीप शर्मा फिलहाल अम्बानी एंटीलिया बम साजिश केस से जुड़े मनसुख हिरेन हत्या मामले में अगस्त 2023 में जमानत पर जेल से बाहर आये हैं। प्रदीप शर्मा नालासोपारा से 2019 में शिवसेना से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं, जिसमें वह हार गए थे।
मुंबई के पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और हमेशा विवादों में रहनेवाले पूर्व सीनियर पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा की पत्नी स्वीकृति और उनकी दोनों बेटियों अंकिता और निकिता शिवसेना में शामिल हो चुकी हैं। एकनाथ शिंदे तीनों को शिवसेना पार्टी की सदस्यता दिलाई। प्रदीप शर्मा के परिवार के साथ उनके कई समर्थक भी शिंदे गुट में शामिल हुए हैं। एकनाथ शिंदे ने सभी का स्वागत किया।
प्रदीप शर्मा फिलहाल अम्बानी एंटीलिया बम साजिश केस से जुड़े मनसुख हिरेन हत्या मामले में अगस्त 2023 में जमानत पर जेल से बाहर आये हैं। प्रदीप शर्मा नालासोपारा से 2019 में शिवसेना से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं, जिसमें वह हार गए थे। हालांकि, जब उन्होंने चुनाव लड़ा था तब शिवसेना का विभाजन नहीं हुआ था। अब उनकी पत्नी और दोनों बेटियों ने शिवसेना में शिंदे गुट का हाथ थामा है। प्रदीप शर्मा की पत्नी स्वीकृति पीएस फाउंडेशन के नाम से एक एनजीओ चलाती हैं और सोशल वर्क फील्ड में काफी एक्टिव रही हैं।
2019 में शिवसेना में शामिल हुए थे प्रदीप शर्मा
प्रदीप शर्मा 35 साल तक पुलिस में रहकर देश की सेवा करने के बाद शिवसेना में शामिल हुए थे और पुलिस अधिकारी के रूप में उनका करियर खत्म हो गया था। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने शर्मा का पार्टी में स्वागत किया था और उन्हें शिव-बंधन बांधा और पार्टी का झंडा सौंपा था। हालांकि, प्रदीप का परिवार शिंदे गुट में शामिल हुआ है और अब उनकी पत्नी और बेटियां उद्धव के खिलाफ राजनीति करती दिखेंगी। एक समय अंडरवर्ल्ड के लिए खौफ का विषय रहे और आम जनता के बीच "एनकाउंटर स्पेशलिस्ट" के रूप में लोकप्रिय शर्मा ने 1990 के दशक के अन्य प्रमुख "एनकाउंटर स्पेशलिस्ट" जैसे विजय सालस्कर, प्रफुल भोसले, अरुण बोरुडे, असलम मोमिन, राजू पिल्लई, रवींद्र आंग्रे और दया नायक के साथ मिलकर "शहर को संगठित अपराध गतिविधियों से मुक्त" करने में मदद की थी।
2016 में बहाल हुई थी पुलिस सेवा
एक समय ऐसा आया जब अपने कई अन्य "एनकाउंटर स्पेशलिस्ट" सहकर्मियों की तरह शर्मा भी 2003 में संदिग्ध आतंकवादी ख्वाजा यूनुस की हिरासत में हुई मौत के मामले में उलझ गए और उन्हें अमरावती स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2008 में उन्हें उसी माफिया के साथ कथित संबंध रखने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था, जिसके खिलाफ वे लड़ रहे थे, तथा दो वर्ष बाद एक कथित फर्जी "मुठभेड़" के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। इससे विचलित हुए बिना शर्मा ने बॉम्बे उच्च न्यायालय और महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण में अपनी बर्खास्तगी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और उन्हें बरी कर दिया गया तथा 2016 में पुलिस बल में पुनः बहाल कर दिया गया।
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