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सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द करने के बाद महाराष्ट्र में राजनीति उफान पर

सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द करने के बाद महाराष्ट्र में राजनीति उफान पर है। हर कोई एक दूसरे पर इसकी नाकामी का ठीकरा फोड़ रहा है। 

Devendra Fadnavis on Maratha Reservation and Nawab Malik- India TV Hindi Image Source : FILE सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द करने के बाद महाराष्ट्र में राजनीति उफान पर है।

मुंबई: सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द करने के बाद महाराष्ट्र में राजनीति उफान पर है। हर कोई एक दूसरे पर इसकी नाकामी का ठीकरा फोड़ रहा है। अब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका करने वालो को ही एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रायोजित बताया है। देवेंद्र फडणवीस ने कहा है की मराठा आरक्षण का विरोध करने वाली जो याचिका दायर की गई है वो NCP स्पांसर है। नवाब मलिक को झूठ बोलने का रोग लगा है। जब से उनके घर वालो के खिलाफ NCB ने कार्यवाही की है तब से उनको केंद्र पर बेवजह बोलने की आदत हो गयी है।

नवाब मलिक ने आरोप लगाया कि विपक्ष कह रहा है कि हमने सही पक्ष नहीं रखा, लेकिन वकील और एक्सपर्ट वही थे, जो पहले थे। गायकवाड़ कमीशन ने जो रिपोर्ट दी उसी पर काम हुआ, उसका गठन बीजेपी सरकार ने ही किया था। बता दें कि महाराष्ट्र में लंबे वक्त ले मराठा आरक्षण को लेकर लड़ाई छिड़ी हुई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ये मामला चला गया था। बुधवार को सर्वोच्च अदालत ने अहम फैसला सुनाया और राज्य सरकार के शिक्षा, नौकरी क्षेत्र में मराठा आरक्षण देने के फैसले को खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले (इंदिरा साहनी फैसले) को वृहद पीठ के पास भेजने से भी इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई के दौरान तैयार तीन बड़े मामलों पर सहमति जताई और कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति या मामला पेश नहीं किया। 

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को असाधारण परिस्थितियों में आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा तोड़ने की अनुमति देने समेत विभिन्न मामलों पर पुनर्विचार के लिए बृहद पीठ को मंडल फैसला भेजने से सर्वसम्मति से इनकार कर दिया। न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था।