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Hindi News मध्य-प्रदेश आलोचनाओं से निपटने के लिए नेताओं की चमड़ी मोटी होनी चाहिए: दिग्विजय सिंह

आलोचनाओं से निपटने के लिए नेताओं की चमड़ी मोटी होनी चाहिए: दिग्विजय सिंह

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने नेताओं को सलाह दी कि अगर वे राजनीति की दुनिया में टिके रहना चाहते हैं, तो उनकी चमड़ी मोटी होनी चाहिए क्योंकि उन्हें अक्सर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है।

digvijaya singh- India TV Hindi Image Source : PTI आलोचनाओं से निपटने के लिए नेताओं की चमड़ी मोटी होनी चाहिए: दिग्विजय सिंह

भोपाल: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने नेताओं को सलाह दी कि अगर वे राजनीति की दुनिया में टिके रहना चाहते हैं, तो उनकी चमड़ी मोटी होनी चाहिए क्योंकि उन्हें अक्सर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सिंह ने बुधवार को एक कार्यक्रम में प्रदेश की भाजपा सरकार का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा कि वह मीडिया को झुकाने के लिए विज्ञापन देने की अपनी नीति को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है। सिंह ने कहा, ‘‘जब तक आप मोटी चमड़ी वाले नहीं हैं, तब तक आप राजनीति नहीं कर पाएंगे।’’

उन्होंने यह टिप्पणी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा नौकरशाह से राजनेता बने नटवर सिंह (पूर्व केंद्रीय मंत्री) को दिए गए एक संक्षिप्त जवाब को याद करते हुए की। गांधी ने नटवर सिंह से कहा था, ''अब आप राजनीति में कदम रख रहे हैं। इसमें मोटी चमड़ी का होना हमेशा फायदेमंद होता है।’’ राज्यसभा सांसद भोपाल के पत्रकारों के एक संगठन ‘सेंट्रल इंडिया प्रेस क्लब’ के समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल सहित भाजपा के अन्य नेता भी मौजूद थे।

इंदिरा गांधी से जुड़ी घटना बताने के बाद सिंह ने पटेल की ओर देखकर कहा, ‘‘(भाजपा में) अपने साथियों से कहिए कि अगर वे राजनीति में हैं तो उनकी चमड़ी मोटी होनी चाहिए और उनमें आलोचना सहने की क्षमता होनी चाहिए।’’ सिंह ने कहा कि देश में इस समय लोगों के बीच नफरत फैलाने का चलन है, जो पत्रकारिता या पत्रकारों के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने प्रदेश सरकार की विज्ञापन नीति का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ इसका इस्तेमाल हथियार के तौर पर किया जा रहा है। यदि आप (उनकी खबर) प्रकाशित करते हैं तो आपको विज्ञापन मिलेगा, अन्यथा नहीं...यह सही नीति नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि जब वह (1993 से 2003 तक) मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब चीजें अलग थीं।

सिंह ने कहा, ‘‘यदि पत्रकारिता में सच बोलने का अधिकार नहीं है, कलम में शक्ति नहीं है तो इसका कोई फायदा नहीं है। (मुख्यमंत्री के रुप में) मेरे 10 साल के कार्यकाल में मेरे खिलाफ इतनी आलोचनात्मक बातें छपीं, लेकिन मैंने कभी किसी प्रकाशन का विज्ञापन बंद नहीं किया।’’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘अगर नेताओं में आलोचना सुनने की क्षमता नहीं है तो उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए।’’ पत्रकारों की नौकरी की स्थिति में सुधार के लिए नेशनल प्रेस कमीशन के गठन की मांग का समर्थन करते हुए सिंह ने कहा कि ‘हायर एंड फायर’ (भर्ती करो और नौकरी से निकालो) नीति के तहत संविदा नियुक्तियों ने शीर्ष और निचले पायदान के लोगों के वेतन में बड़ा अंतर पैदा कर दिया है।

उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण पत्रकारों को कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है। एक प्रतिष्ठित थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए सिंह ने कहा कि पिछले पांच साल में मीडिया के क्षेत्र में 78 प्रतिशत कार्यबल बेरोजगार हो गया है। उन्होंने कहा, ‘‘सितंबर 2016 में करीब 10.25 लाख लोग मीडिया क्षेत्र में कार्यरत थे, जबकि अगस्त 2021 में यह संख्या महज 2.
25 लाख रह गई।’’

वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह ने इस अवसर पर कहा कि इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी के अनुसार प्रकाशन संस्थानों को कोरोना वायरस के कारण 15 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसने कई पत्रकारों को बेरोजगार भी कर दिया है। सिंह ने कहा कि आजादी के बाद दो प्रेस आयोगों का गठन हुआ और इनकी सिफारिशों पर ही सरकार ने भारतीय प्रेस परिषद और भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक के कार्यालय का गठन किया था। उसके बाद पत्रकारों के लिए वेतन आयोग की स्थापना की गई। उन्होंने तीसरे प्रेस आयोग के गठन की आवश्यकता का जिक्र करते हुए कहा कि मीडिया में विशेष तौर पर टीवी, वेब और सोशल मीडिया पत्रकारिता के आने के बाद हुए बदलावों को देखते हुए इसका गठन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह मंच पत्रकारों और पत्रकारिता के सामने आ रही समस्याओं के समाधान के लिए जल्द ही इसके गठन की मांग करता है।