सिंधिया परिवार के सदस्यों ने अपना पहला और आखिरी चुनाव कभी एक ही पार्टी से नहीं लड़ा, जानें रोचक तथ्य
मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवार की वर्तमान पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गुना से अप्रत्याशित रूप से हारने के 5 साल बाद वापस मैदान में हैं, लेकिन इस बार ईवीएम पर उनके नाम के आगे भाजपा का चुनाव चिह्न ‘कमल’ होगा।
ग्वालियर के पूर्व शाही सिंधिया परिवार के प्रभावशाली सदस्य अपने गृह क्षेत्र से विभिन्न चुनाव लड़ते समय अलग-अलग राजनीतिक दलों के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरे हैं और अब केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट से भाजपा (भाजपा) उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल कर इस चलन को आगे बढ़ाया है। मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवार की वर्तमान पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गुना से अप्रत्याशित रूप से हारने के 5 साल बाद वापस मैदान में हैं, लेकिन इस बार ईवीएम पर उनके नाम के आगे भाजपा का चुनाव चिह्न ‘कमल’ होगा।
2019 में हुई थी करारी हार
53 वर्षीय ज्योतिरादित्य भाजपा संस्थापकों में शामिल विजया राजे सिंधिया के पोते और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया के बेटे हैं। गुना लोकसभा सीट सिंधिया के उस गृह क्षेत्र का हिस्सा है, जो गुना, शिवपुरी और अशोक नगर जिलों की आठ विधानसभा सीट में फैला है। ठीक चार साल पहले मध्य प्रदेश में अपनी सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस चुनाव मैदान में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हिसाब-किताब बराबर करने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसने गुना से अपने उम्मीदवार का नाम अभी तक घोषित नहीं किया गया है।
पूर्व ग्वालियर राजघराने के लिए यह एक दुर्लभ चुनावी झटका था जब केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री को 2019 में भाजपा उम्मीदवार और उनके पुराने वफादार के पी यादव के हाथों लगभग 1.26 लाख वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
गुना लोकसभा क्षेत्र से जुड़े रोचक तथ्य-
- सिंधिया 2024 में फिर से चुनावी मैदान में हैं, लेकिन इस बार वह भाजपा के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा उनकी मौसी एवं राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और मध्य प्रदेश की पूर्व मंत्री यशोधरा राजे का राजनीतिक घर है।
- गुना लोकसभा क्षेत्र का इतिहास बताता है कि सिंधिया परिवार के सदस्यों ने अपना पहला और आखिरी चुनाव कभी एक ही पार्टी से नहीं लड़ा है।
- केंद्रीय मंत्री की दादी राजमाता विजया राजे सिंधिया ने अपना पहला चुनाव 1957 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने 1967 में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और फिर 1989 में भाजपा से चुनाव लड़ा।
- उनके पिता माधवराव सिंधिया ने अपना पहला चुनाव 1971 में भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के टिकट पर गुना से लड़ा था और 2001 में नई दिल्ली के पास एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने अपना आखिरी चुनाव 1999 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लड़ा था।
'हमेशा से ही सिंधिया की पसंद रहा है संघ, हिंदुत्व और दक्षिणपंथ'
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा, ‘‘दशकों तक अलग-अलग राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ने के बाद सिंधिया परिवार ने आखिरकार अपने अतीत और वैचारिक झुकाव के अनुसार पार्टी चुन ली है।’’ किदवई ने कहा कि राजशाही युग में संघ, हिंदुत्व और दक्षिणपंथ हमेशा से ही सिंधिया की पसंद रहा है। गुना संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व राजमाता सिंधिया ने 6 बार किया, जबकि उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने 4 बार यहां से जीत हासिल की।
गुना के अलावा, राजमाता सिंधिया ने एक बार पारिवारिक क्षेत्र का हिस्सा ग्वालियर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था। माधवराव सिंधिया ग्वालियर से पांच बार चुने गए। राजमाता सिंधिया की बेटी यशोधरा राजे ने भी भाजपा के लिए दो बार लोकसभा में ग्वालियर सीट का प्रतिनिधित्व किया।
मार्च 2020 में थामा था बीजेपी का दामन
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2002 से 2014 के बीच चार बार गुना सीट का प्रतिनिधित्व किया है, जिसमें उपचुनाव में जीत भी शामिल है। वह अपनी हार के एक साल बाद मार्च 2020 में 22 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए, जिससे मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई थी। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार सिंधिया परिवार के लिए दूसरा झटका थी। इससे पहले 1984 में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भिंड लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर हार का सामना करना पड़ा था। वह कांग्रेस उम्मीदवार कृष्णा सिंह जूदेव से हार गईं, जो दतिया के पूर्व शाही परिवार से हैं। गुना लोकसभा क्षेत्र में 18.80 लाख से अधिक मतदाता हैं और यहां सात मई को तीसरे चरण में मतदान होगा।
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