शिक्षा घोटाले में 26 साल बाद आया फैसला; 4 आरोपियों की मौत, 14 को सजा लेकिन कोई नहीं गया जेल
1998 में हुए बहुचर्चित शिक्षा भरती घोटाले में 26 साल बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस मामले में कुल 19 आरोपी थे। इनमें से एक को बरी कर दिया गया। वहीं, चार की मौत हो गई और 14 को सजा दी गई है।
मध्य प्रदेश के रीवा जिले के जनपद पंचायत जवा में हुए बहुचर्चित शिक्षा भरती घोटाले में जिला न्यायालय के प्रथम अपर सत्र न्यायधीश डॉ। मुकेश मलिक ने अहम फैसला सुनाया। शिक्षा भरती घोटाले का मामला 1998 में उजागर हुआ था। कुल 19 आरोपियों के विरूद्ध लोकायुक्त में अपराध पंजीबद्ध किया गया था। इस मामले में 26 साल बाद प्रथम अपर सत्र न्यायधीश ने अहम फैसला सुनाते हुए 14 आरोपियों को विभिन्न धाराओं के तहत सजा सुनाई। घोटाले के 4 आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि एक व्यक्ती को दोषमुक्त किया गया है।
1998 में वर्ग 1, 2 और 3 के लिए राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत 60 पद और स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षाकर्मी विभिन्न पदों में 110 पदों के लिए नियुक्तियां किए जानें का आदेश पारित किया गया था। नियमानुसार 170 पदों में भरती प्रक्रिया के लिए बकायदा चयन समिति का गठन किया गया था। लेकिन चयन समिति के सदस्यों ने नियमों का उल्लंघन करते हुए भरती प्रक्रिया में कई अनियमितताएं की गई। समिती के सदस्यों ने रिक्त पड़े पदों से अधिक नियुक्तियां कीं। 1998 में ही शिक्षा भरती में की गई अनियमितता की भनक लगते ही मामले की शिकायत लोकायुक्त पुलिस में की गई। लोकायुक्त टीम ने जांच करते हुए चयन समिती सदस्य के 19 लोगों पर FIR दर्ज करते हुए उनके विरूद्ध प्रकरण तैयार किया और न्यालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिए। मामले का फैसला आते आते 26 साल बीत गौर और शुक्रवार की देर शाम तकरीबन 8 बजे जिला न्यायालय के प्रथम अपर सत्र न्यायधीश डॉ। मुकेश मलिक ने अहम फैसला सुनाया।
तीन गुना की जगह 5 गुना बुलाए गए आवेदनकर्ता
लोक अभियोजन अधिकारी ने बताया की तीन गुना की जगह 5 गुना आवेदक बुलाए गए। रजिस्टर पंजीयन में काट छांट की गई इसके अलावा और भी कई प्रकार की अनियमित्ताए की गई थीं। दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी 2 साल का कारावास और 3-3 हजार रूपए का जुर्माना किया गया है। इसके साथ ही धारा 367 के तहत 3 साल का कारावास और 5-5 हजार रुपय के जुर्माने से दंडित किया गया है, जबकि धारा 471 के तहत दो साल के कारावास के साथ 5 हजार रुपय से दंडित किया गया है। हालांकि, सजा सुनाए जाने के बाद इन अभि आरोपियो को जमानत भी मिल गई। क्योंकि इन्हें तीन साल की ही सजा सुनाई थी। अगर तीन साल से एक दिन भी ज्यादा होता तो नियमानुसार सभी को जेल के सलाखों के पीछे जाना पड़ता।
दो विधायक प्रतिनिधि बने आरोपी
घोटाले के आरोपी चयन समिति के सदस्य थे। इसमें मुख्य कार्यपालन अधिकारी तत्कालीन मुख्य शिक्षा अधिकारी के साथ ही चयन समिति के अध्यक्ष रमाशंकर तिवारी, जनपद पंचायत सदस्य शामिल थे। वहीं मामले में दो विधायक प्रतिनिधि भी आरोपी बने थे, जिनका नाम शिवपाल सिंह और संजीव वर्मा शामिल है। कोर्ट का फैसला आने काफी समय लग गया, क्योंकि मामला बहुत बड़ा था। इसमें कई दस्तावेज थे न्यायलय ने 45 अभियोजन साक्ष्यों का परीक्षण कराया गया था और 240 दस्तावेजों को न्यायालय में प्रदर्शित कराया गया था।