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Hindi News मध्य-प्रदेश मध्य प्रदेश में ‘तीसरा विकल्प’ बनने में जुटे दल बिगाड़ सकते हैं भाजपा-कांग्रेस का खेल, BSP बनेगी किंग मेकर?

मध्य प्रदेश में ‘तीसरा विकल्प’ बनने में जुटे दल बिगाड़ सकते हैं भाजपा-कांग्रेस का खेल, BSP बनेगी किंग मेकर?

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को विधानसभा चुनावों के लिए मतदान हो चुका है। लेकिन जिस मजबूती से कुछ क्षेत्रीय दलों, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव लड़ा है, राजनीतिक पंडित बता रहे हैं कि इससे भाजपा और विशेष तौर पर कांग्रेस का खेल खराब हो सकता है।

bsp- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO मध्य प्रदेश में बीएसपी और सपा ने लड़ा मजबूती से चुनाव

मध्य प्रदेश की दो ध्रुवीय राजनीति में ‘तीसरा विकल्प’ बनने की कोशिश में जुटी बहुजन समाज पार्टी (BSP) इस बार के विधानसभा चुनाव में दो दर्जन से अधिक सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस, दोनों का ही खेल बिगाड़ती दिख रही है। समाजवादी पार्टी (SP) सहित ‘INDIA’ गठबंधन के कुछ घटक दलों में भी अपनी ‘छाप छोड़ने’ की छटपटाहट है जो उनका ‘अपना’ ही नुकसान करती दिख रही है। बसपा ने इस चुनाव में आदिवासी बहुल क्षेत्रों, खासकर महाकौशल की राजनीति में प्रभाव रखने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के साथ गठबंधन किया है। बसपा ने 183 सीटों पर तो गोंगपा ने 45 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। 

बसपा और सपा के अलावा किसी और का नहीं प्रभाव

बता दें कि मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी चुनाव मैदान में हैं। हालांकि बसपा और सपा के अलावा किसी अन्य दल का कोई ऐसा प्रभाव नहीं है जिससे चुनावी नतीजों में कोई बड़ा अंतर आए। प्रदेश के ग्वालियर-चंबल और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे विंध्य और बुंदेलखंड के क्षेत्रों में बसपा ने हमेशा जबकि सपा ने कुछ चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। बसपा ने सबसे कम 7 प्रतिशत और सबसे अधिक 11 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं। 1993 और 1998 के चुनावों में उसके 11 उम्मीदवार विधायक बने थे और दोनों ही बार कांग्रेस की सरकार बनी थी। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 173 सीटें जीतकर कांग्रेस को जब सत्ता से बेदखल किया था तब बसपा को 10.6 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि तब उसके दो ही उम्मीदवार विधानसभा पहुंच सके थे। 

सपा-बसपा का वोट बैंक प्रभावित करता है नतीजे 

पिछले चुनाव में भी बसपा को दो ही सीट मिली थी और उसका मत प्रतिशत गिरकर 6.42 पर आ गया था। इस चुनाव में कांग्रेस 114 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और बसपा के दो, सपा के एक और कुछ निर्दलीयों की मदद से कांग्रेस ने सरकार बनाई। सपा ने इस राज्य में सबसे अच्छा प्रदर्शन 2003 के चुनाव में किया था, जब उसके सात विधायक विधानसभा पहुंचे थे। तब उसे 5.26 प्रतिशत वोट मिले थे। यह इस बात के संकेत हैं कि बसपा और सपा के वोट बैंक का बढ़ना या घटना, चुनावी नतीजे को प्रभावित करता है। बसपा और सपा सहित अन्य दलों ने इस चुनाव में बागियों पर दांव खेला है। लिहाजा कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। ये उम्मीदवार कुछ सीटों पर भाजपा का तो कुछ पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ रहे हैं। 

इन सीटों पर बसपा के उम्मीदवार बिगाड़ रहे खेल

विंध्य की सतना, नागौद, चित्रकूट और रैगांव सीट पर बसपा के उम्मीदवार मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं। सतना में जहां भाजपा के बागी व बसपा के उम्मीदवार रत्नाकर चतुर्वेदी ‘शिवा’ ने भाजपा सांसद गणेश सिंह के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं, वहीं बगल की नागौद सीट पर कांग्रेस के बागी और बसपा उम्मीदवार बने यादवेंद्र सिंह अपनी ही पूर्व पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। इसी प्रकार चित्रकूट सीट पर भाजपा के बागी सुभाष शर्मा ‘डॉली’ हाथी पर सवार हो गए हैं और भाजपा के उम्मीदवार व पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार और कांग्रेस के मौजूदा विधायक नीलांशु चतुर्वेदी की राह कठिन करते नजर आ रहे हैं। जिले की एकमात्र सुरक्षित रैगांव सीट पर बसपा के देवराज अहिरवार मैदान में हैं। मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी का टिकट कटने के बाद वे विंध्य जनता पार्टी बनाकर कांग्रेस-भाजपा प्रत्याशियों को टक्कर दे रहे हैं। उन्होंने विंध्य क्षेत्र की 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं रीवा की त्योंथर विधानसभा सीट पर भाजपा के बागी देवेंद्र सिंह हाथी के साथ मिलकर ‘कमल’ का खेल बिगाड़ रहे हैं। भाजपा ने यहां से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी राज को उम्मीदवार बनाया है। 

बसपा और सपा से भाजपा को इनडायरेक्ट फायदा

2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विंध्य क्षेत्र की कुल 30 सीटों में से 24 पर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ 6 सीट जीत पाई थी। क्षेत्र के लोग बताते हैं कि जब भी इस क्षेत्र में बसपा और सपा ने मजबूती से चुनाव लड़ा है तो उसका फायदा भाजपा को मिला है। बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की भी कई सीटों पर बसपा ने भाजपा और कांग्रेस के बागियों को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट से भाजपा के बागी रसाल सिंह बसपा के टिकट पर मैदान में हैं तो अटेर से मुन्ना सिंह भदौरिया साइकिल की सवारी कर रहे हैं। इसी प्रकार भिंड विधानसभा सीट से भाजपा के पूर्व विधायक संजीव सिंह कुशवाह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मुरैना सीट से भाजपा के बागी राकेश रुस्तम सिंह बसपा से चुनाव मैदान में हैं जबकि सुमावली सीट से कांग्रेस के बागी कुलदीप सिकरवार और दिमनी से बलवीर दंडोतिया बसपा के टिकट पर मैदान में डटे हैं। शिवपुरी की पोहरी सीट से कांग्रेस के बागी प्रद्युमन वर्मा बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं। 

केंद्रीय मंत्री बनाम बसपा के पूर्व विधायक

इस चुनाव में सबकी नजर ग्वालियर की दिमनी सीट पर है जहां भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को उतारा है लेकिन बसपा के पूर्व विधायक बलवीर सिंह उन्हें कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। यहां कांग्रेस के वर्तमान विधायक रविंद्र सिंह तोमर मैदान में हैं। बुंदेलखंड के जतारा में कांग्रेस के बागी धर्मेंद्र अहिरवार ने बसपा के टिकट से और सागर जिले के बंडा विधानसभा में भाजपा से बगावत कर सुधीर यादव ने ‘आप’ से उतरकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। महाकौशल क्षेत्र में गोंगपा-बसपा जिन सीटों पर मुकाबले में है उनमें मंडला की बिछिया सीट प्रमुख है। यहां से गोंगपा के कमलेश टेकाम भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं। 

बसपा और सपा ने मजबूती से लड़ा चुनाव

आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश में कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और इसकी प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल सिंगरौली सीट से उम्मीदवार हैं। वहीं जदयू ने 10 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़’ में सह-निदेशक संजय कुमार ने कहा, ‘‘इस बार भी कोई दल तीसरा विकल्प बनने की स्थिति में नहीं है। हालांकि बसपा और सपा मजबूती से चुनाव लड़ते दिख रहे हैं। पिछले चुनावों के अनुभवों को भी देखें तो बसपा और सपा ने नुकसान कांग्रेस का ही किया है और इसका फायदा भाजपा को मिला है। अब किसने किसकी नैया डुबोई, और कौन पार लगा, ये सब 3 दिसंबर को साफ हो जाएगा।

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