MP के इस कस्बे में जाने वाले सीएम को गंवानी पड़ती है कुर्सी, क्या इसी डर से शिवराज सिंह 16 साल में एक बार भी नहीं गए?
सीहोर जिले में आने वाले इस कस्बे में मुख्यमंत्री जाने से डरते हैं। माना जाता है कि यह जो भी सीएम जाता है वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाता है। इसी डर की वजह से शिवराज सिंह यहां जाने से बचते रहे।
Madhya Pradesh Assembly Elections: हम आधुनिक और वैज्ञानिक काल में जी रहे हैं। लेकिन कुहक मिथकों और पुरानी मान्यताओं को आज भी मानते हैं। कई लोग आज भी बिल्ली के गुजरे हुए रास्ते से जाने से परहेज करते हैं। कई गुरूवार को नाख़ून काटने से मना करते हैं। ऐसा नहीं है कि यह सब आम आदमी ही मानता हो। भारत की राजनीति में भी कुछ ऐसे ही मिथक माने जाते हैं। देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसमें भी तमाम पार्टियां और नेता ऐसी ही परम्पराओं को मान रहे हैं। जैसे कांग्रेस पार्टी ने श्राद्ध पक्ष समाप्त होने के बाद अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की।
इसके साथ ही मध्य प्रदेश में एक ऐसा क़स्बा भी है, जहां मुख्यमंत्री जाने से बचते हैं। यह क़स्बा सीहोर जिले का इछावर। यह एक विधानसभा क्षेत्र भी है। यहां शिवराज सिंह अपने साढ़े सोलह साल के लंबे कार्यकाल में एक बार भी नहीं गए। ऐसा नहीं है कि यहां के स्थानीय नेताओं और जनता ने सीएम को आमंत्रित ना किया हो। उन्हें यहां आने के लिए कई बार उन्हें आमंत्रित भी किया गया, लेकिन वो वहां गए तो लेकिन अपनी गाड़ी से नहीं उतरे। माना जाता है कि यहां कोई भी मुख्यमंत्री आता है तो उसे अपनी कुर्सी गंवानी पड़ती है। इसी डर की वजह से शिवराज सिंह यहां जाने से बचते रहे।
पहले गए हैं कई सीएम, लेकिन...
ऐसा नहीं है कि यहां कोई मुख्यमंत्री गया नहीं। यहां कैलाश नाथ काटजू, द्वारका प्रसाद मिश्र, कैलाश जोशी, वीरेंद्र कुमार सकलेचा और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए गए, लेकिन इसके बाद उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। माना जाता है कि इसी वजह से शिवराज सिंह भी कभी इछावर नहीं गए। आखिरी बार यहां मुख्यमंत्री के तौर पर 15 नवंबर 2003 को एक सरकारी कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह इछावर पहुंचे थे। इस दौरान दिग्विजय सिंह ने मंच से कहा था कि मैं मुख्यमंत्री के रूप में इस मिथक को तोड़ने के लिए आया हूं। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। यहां बीजेपी की सरकार बनी और उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद बाबूलाल गौर सीएम बने। लेकिन वह भी इछावर नहीं गए। शिवराज सिंह ने भी इस मिथक को कायम रखा और यहां जाने से बचते रहे।
यूपी के नोएडा को लेकर भी माना जाता था यही मिथक
बता दें कि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले (नोएडा) को लेकर भी यही मिथक माना जाता था। यहां भी कहा जाता था कि अगर कोई मुख्यमंत्री इस शहर में आता है तो उसकी कुर्सी चली जाती है। यहां भी मुख्यमंत्री आने से बचते थे। सीएम रहते हुए अखिलेश यादव एक चुनावी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये थे लेकिन उन्होंने नोएडा की धरती पर कदम भी नहीं रखा था। वह अपने समाजवादी रथ पर ही सवार रहे थे। हालांकि योगी आदित्यनाथ ने इस मिथक को तोड़ा दिया। वह अपने पहले कार्यकाल में नोएडा 10 बार से भी ज्यादा आए और 2022 में जब दोबारा विधानसभा चुनाव हुए तब उन्होंने भारी बहुमत से विजय हासिल की और दोबारा मुख्यमंत्री बने।