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Hindi News मध्य-प्रदेश कैसा होता था कारसेवकों का ID कार्ड? इस शख्स ने सहेज कर रखे हैं सारे दस्तावेज

कैसा होता था कारसेवकों का ID कार्ड? इस शख्स ने सहेज कर रखे हैं सारे दस्तावेज

मध्य प्रदेश के शहडोल में एक कारसेवक के पास वो सारे पुराने दस्तावेज हैं जो कारसेवा के दौरान उन्होंने एकत्र किए थे। इनमें कारसेवकों का पहचान पत्र, कुछ रसीदें और 6 दिसंबर 1992 को छपे अखबारों में उनकी तस्वीरें भी हैं।

Karseva- India TV Hindi Image Source : INDIA TV रमेश गुप्ता के पास हैं कारसेवा से जुड़े सभी दस्तावेज

शहडोल: जब किसी इंसान द्वारा सालों पहले देखा गया सपना उसी की आखों के सामने साकार हो जाए तो आखों का नम होना स्वभाविक है। शहडोल के ब्यौहारी के रहने वाले रमेश गुप्ता के साथ यही हो रहा है। अब जब रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की पूरी तैयारी भी हो चुकी है। 22 जनवरी को रामलला अपने घर अयोध्या में विराजमान होने जा रहे हैं और इस घड़ी का इंतजार शहडोल के ब्यौहारी कस्बे में रहने वाले एक कारसेवक को बीते 31 वर्षो से है। इस कारसेवक ने 31 सालों से वो सारी घटनाएं दस्तावेजों के तौर पर अपने पास सहेज कर रखी हैं।

रमेश गुप्ता के पास हैं सारे दस्तावेज

दरअसल, 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने के दौरान वहां मौजूद रहे रमेश प्रसाद गुप्ता आज भी अपने पास 6 दिसंबर की कई स्मृतियां सहेज कर रखे हुए हैं। उसमें कारसेवक का परिचय पत्र, अखबार की एक प्रति जिसमे रमेश गुप्ता की तस्वीर भी छपी थी। इसके अलावा 10 हजार नगद और 5 क्विंटल चावल जमा कराने की रसीद आज भी उनके पास है। ये सब दिखाते हुए वो कई बार भावुक भी हो गए।

कारसेवा के लिए निकले और यूपी में हुए गिरफ्तार

रमेश गुप्ता पहली बार कारसेवा के लिए 1990 में अयोध्या के लिए निकले थे। उन्हें चित्रकूट के रास्ते उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने के लिए कहा गया था। जैसे ही वह चित्रकूट की सीमा पर पहुंचे तो यूपी पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया और नारायणी जेल में माहौल शांत होने तक बंद रखा गया। रमेश प्रसाद बताते हैं कि वो 1 दिसम्बर 1992 को अयोध्या पहुंच गए थे। रोज शाम को कारसेवापुरम में नेताओं का भाषण होता था। मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, दीदी मां ऋतम्भरा सहित कई नेता और संत मौजूद रहते थे।

रात 11 बजे तक गिरा दिया गया था ढांचा 

रमेश गुप्ता ने बताया कि उसदिन कारसेवक अपने हाथों से ढांचा गिराने लगे। कुछ कारसेवक तंबू से गैंती, फावड़ा भी ले आये और रात 11 बजे तक ढांचा गिरा दिया गया था। इसके बाद उन्होंने एक चबूतरा का निर्माण किया और रामलला को विराजित कर दिया। रमेश गुप्ता महज 34 वर्ष की आयु में राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवक रहकर कई बार वो संघर्षों से जूझते रहे और अब उनका सपना पूरा होने जा रहा है। रमेश बताते हैं कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि इस जीवन में वो राम मंदिर का निर्माण होते देख पाएंगे। पुरानी यादों को लेकर उनकी आंखें आज  भी भर आती हैं।

(रिपोर्ट- विशाल खण्डेलवाल)

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