Bhopal Gas Tragedy: एक फोन कॉल से रिहा हो गया था वारेन एंडरसन, राजीव गांधी पर लगे थे मदद के आरोप!
भोपाल गैस त्रासदी के बाद पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी। हालांकि वो इतने बड़े हादसे के बाद भी कुछ ही घंटों में देश से निकलने में सफल रहा था।
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 यानी आज से 38 साल पहले एक दर्दनाक हादसा हुआ था। इतिहास में जिसे भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) का नाम दिया गया। ठीक 38 साल पहले भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं। मगर इस हादसे का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन देश छोड़कर भागने में सफल रहा और कभी उसे वापस नहीं लाया जा सका।
भोपाल गैस त्रासदी की 38वीं बरसी पर एक बार फिर लोगों के जेहन में यूनियन कार्बाइड कारखाने के मालिक वारेन एंडरसन की यादें ताजा कर दी हैं। भोपाल गैस त्रासदी के बाद पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी। हालांकि वो इतने बड़े हादसे के बाद भी कुछ ही घंटों में देश से निकलने में सफल रहा था और फिर कभी भारत नहीं लौटा। आखिर क्या है देश की सबसे बड़ी त्रासदी के मुजरिम के भारत से भागने की कहानी। क्यों अभी तक भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को नहीं मिला पूरा न्याय?
तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर लगे वारेन एंडरसन को भगाने के आरोप-
इस पूरे मामले के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को भगाने में आरोप लगे और चर्चा भी रही कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर राज्य के उस वक्त के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन को हिरासत से छोड़ने का आदेश दिया था। हालांकि कोर्ट में आरोपी को भगाने के षड्यंत्र का कोई मुकदमा तो नहीं चला, लेकिन जिन धाराओं में चार्जशीट दायर की गई, वह यह बताने के लिए काफी है कि सरकार का नजरिया हजारों मौतों के बाद भी संवेदनशील नहीं था। ये भी कहा गया कि राजीव गांधी को अमेरिका के उच्च अधिकारियों से एंडरसन को छोड़ने के लिए दबाव आ रहा था।
वहीं भोपाल गैस त्रासदी के समय कलेक्टर रहे मोती सिंह ने अपनी किताब भोपाल गैस त्रासदी का सच में उस सच को भी उजागर किया, जिसके चलते वारेन एंडरसन को भोपाल से जमानत देकर भगाया गया। मोती सिंह ने अपनी किताब में पूरे घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वारेन एंडरसन को अर्जुन सिंह के आदेश पर छोड़ा गया था। वारेन एंडरसन के खिलाफ पहली एफआईआर गैर जमानती धाराओं में दर्ज की गई थी। इसके बाद भी उसे जमानत देकर छोड़ा गया।
कैसे आया और कैसे गया एंडरसन-
घटना के बाद यूनियन कार्बाइड और इसके सीईओ वारेन एंडरसन के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा था। मामले को लेकर 3 दिसंबर की शाम भोपाल के हनुमानगंज पुलिस थाने में केस दर्ज हुआ था। जानकारी के मुताबिक एंडरसन अपने कुछ सहयोगियों के साथ 7 दिसंबर की सुबह 9.30 बजे इंडियन एयरलाइंस के विमान से भोपाल पहुंचा। एयरपोर्ट पर तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह ने उसे रिसीव किया। इसके बाद एसपी और डीएम वारेन एंडरसन को यूनियन कार्बाइड के रेस्ट हाउस ले गए और वहीं उसे हिरासत में लिए जाने की जानकारी दी गई।
बताया जाता है कि दोपहर में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद दोपहर 3.30 बजे एंडरसन को भोपाल के एसपी स्वराज पुरी स्टेट हेंगर छोड़ने गए, जहां से उसने दिल्ली और फिर अमेरिका के लिए उड़ान भरी। हालांकि अर्जुन सिंह ने बाद में इसको लेकर कहा था कि उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से एंडरसन को छोड़ने के लिए कहा गया था।
2014 में गुमनामी में हुई एंडरसन की मौत-
जानकारी के मुताबिक 9 फरवरी 1989 को सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। वहीं उसे 1 फरवरी 1992 को भगोड़ा घोषित किया गया। कई गैर सरकारी संगठनों ने मुआवजे और एंडरसन को वापस लाने के लिए अमेरिका तक लड़ाई लड़ी लेकिन वो कभी वापस नहीं लौटा। 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा स्तिथ एक नर्सिंग होम में एंडरसन की मौत हो गई, जिसका एक महीने बाद खुलासा हुआ।
जांच आयोग का हुआ गठन, फिर भी रहस्य बरकरार-
वारेन एंडरसन की रिहाई और दिल्ली के लिए विशेष विमान उपलब्ध कराने की जांच के लिए 2010 में एक सदस्यीय जस्टिस एस.एल.कोचर आयोग का गठन किया गया। आयोग के सामने तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी ने कहा था कि एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए लिखित आदेश था, लेकिन रिहाई का आदेश मौखिक था। यह आदेश वायरलेस सेट पर मिला था। एंडरसन क्यों और कैसे भागा और किसने भगाया ये सिर्फ बयानों और किताबों में दर्ज होकर रह गया।
देखा जाए तो एंडरसन को गिरफ्तार करके वापस हिंदुस्तान लाने की कभी सही तरीके से कोशिश ही नहीं की गई। यहां तक कि गैस कांड के जो जि़म्मेदार हिंदुस्तान में रहते हैं, उन्हे भी बहुत सस्ते में छोड़ दिया गया। सोचिए हजारों मौतों के बदले 2010 में अदालत ने फेक्ट्री के कर्मचारियों को सिर्फ दो साल की सजा दी। उसपर भी मुख्य आरोपी बिना सजा के चला गया, आखिर इसे पूरा इंसाफ कैसे कह सकते हैं?