सड़क किनारे ठंड से सिकुड़ता हुआ भिखारी निकला एक सब इंस्पेक्टर
बिहार में 10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात 1:30 बजे जब सुरक्षा व्यवस्था में तैनात दो डीएसपी सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे भिखारी को देखते है तो एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट दे देता है।
ग्वालियर: कचरे में खाना ढूंढता हुआ किसी भिखारी को देखना कोई अचंभे की बात नजर नही आती है क्योंकि यह तस्वीर आपके आसपास आसानी से दिख जाती है लेकिन यदि वही भिखारी अचूक निशानेबाज थानेदार निकल आए और आपको देख आपके नामसे पुकारे तो आप भी हैरान हो जाएंगे। कुछ ऐसा ही हुआ ग्वालियर में 10 नवंबर मतगणना की रात दो डीएसपी अधिकारी के साथ।
बिहार में 10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात 1:30 बजे जब सुरक्षा व्यवस्था में तैनात दो डीएसपी सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे भिखारी को देखते है तो एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट दे देता है। और वहां से जाने लगते है लेकिन बेहद बुरे हाल में भिखारी जैसे ही दोनों डीएसपी को नाम से पुकाराता है तो दोनों सकते में आ गए और उन्होंने जब पलट कर गौर से भिखारी को पहचाना तो वह भी अचम्भे में आ गए। क्योंकि भिखारी उनके साथ के बेच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा निकला। जो 10 साल से सड़कों पर लावारिस हाल में घूम रहा था।
जितने हैरान यह अधिकारी हुए उतने ही हैरान अब आप भी हो रहे होंगे। झांसी रोड इलाके में सालों से सड़कों पर लावारिस घूम रहा है शख्स पुलिस का सन 1999 की बैच का अचूक निशानेबाज थानेदार मनीष मिश्रा होगा यह किसी ने सपने मैं भी नहीं सोचा होगा। दरअसल मतगणना की रात सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदोरिया के ऊपर था। मतगणना पूरी होने के बाद दोनों विजयी जुलूस के रूट पर तैनात थे। इस दौरान बंधन वाटिका के फुटपाथ पर एक अधेड़ भिखारी ठंड से ठिठुर रहा था। उसे संदिग्ध हालत में देखकर अफसरों ने गाड़ी रोकी और उससे बात की। दयनीय हालत देख डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर ने उन्हें अपने जूते और विजय भदोरिया ने अपनी जैकेट दे दी। जब निकलने को हुए तो भिखारी ने विजय भदोरिया को उनके नाम से पुकारा दोनों अफसर भी सोच में पड़ गए।
जब दोनों डीएसपी ने उससे पूछा तो उसने अपना नाम मनीष मिश्रा बताया। मनीष दोनों अफसरों के साथ 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में भर्ती हुआ था। इसके बाद दोनों ने काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बात की और अपने साथ ले जाने की जिद की। जबकि वह साथ जाने को राजी नहीं हुआ। आखिर में समाज सेवी संस्था से उसे आश्रम भिजवा दिया गया जहां उसकी अब बेहतर देखरेख हो रही है।
आप सोच रहे होंगे कि आखिर मनीष मिश्रा इन हालातों में क्यों आया तो उसके पीछे वजह है उनका मानसिक संतुलन खो देना। जबकि मनीष मिश्रा के परिवार की बात की जाए तो उनके भाई भी टी आई है। पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं। चचेरी बहन दूतावास में पदस्थ है और मनीष मिश्रा द्वारा खुद 2005 तक नौकरी की गई है। आखिरी समय तक वह दतिया जिले में पदस्थ रहे इसके बाद मानसिक संतुलन खो बैठे। शुरुआत में 5 साल तक घर पर रहे इसके बाद घर में नहीं रुके। यहां तक कि इलाज के लिए जिन सेंटर व आश्रम में भर्ती कराया वहां से भी भाग गए। परिवार को भी नहीं पता था कि वे कहां है। पत्नी से उनका तलाक हो चुका है जो न्यायिक सेवा में पदस्थ हैं। लिहाजा इस घटनाक्रम से जितने यह अधिकारी हैरान हुए उतने आप भी अब हैरान हो रहे होंगे लेकिन खुशी इस बात की है कि अब मनीष ग्वालियर के एक सामाजिक आश्रम में रह रही है और उनका इलाज किया जा रहा है।