इस वीकेंड पर आप अगर आप कहीं घूमने का प्लान कर रहे हैं तो सांझी महोत्सव देखने ब्रजभूमि जा सकते हैं। ब्रजभूमि में ये उत्सव पितृ पक्ष के 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है। दरअसल, इस उत्सव के पीछे यहां कि लोककला और संस्कृति है जिसमें कि रंगों से घर के बाहर राधारानी और कृष्ण के रास को उकेरने की कोशिश की जाती है। इस कला की शुरुआत श्रीराधा जी ने की थी। इसमें शाम के दौरान घर के बाहर रंगोली बनाकर राधीजी को बुलाने की कोशिश की जाती है।
सांझी कला में दिखाया जाता है राधा-कृष्ण का प्रेम संबंध
सांझी कला में राधा-कृष्ण का प्रेम संबंध दिखाया जाता है। इसमें बारीकी से चित्रण किया जाता है। भले ही ये रंगोली जैसा दिखे पर ये इससे थोड़ा अलग होता है। बताया जाता है कि राधा ये किया करती थीं। फूलों की सांझी बनाकर राधा कृष्ण को बुलाती थीं और उन्हें रिझाने की कोशिश करती थीं। अब पृतपक्ष में इस कला के माध्यम से राधा जी बुलाने की कोशिश होती है। साथ ही इसके पीछे ये सोच होती है कि राधा, ब्रज की देवी हैं और भले ही आजा राधा यहां नहीं हैं पर उनके लोग उनकी याद में, उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
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मंदिरों में हर दिन बनाई जाती है नई-नई सांझी
इस अवसर पर मंदिरों में फूलों की सांझी, गोबर की सांझी, सूखे रंगों की सांझी, पानी के नीचे सांझी और पानी के ऊपर सांझी बनाई जाती है। इसके अलावा हर साल इस सांझी के पीछे अलग-अलग थीम रहता है।
इन मंदिरों में आप घूमने जा सकते हैं
सांझी कला देखने के लिए आप वृंदावन के पौराणित ब्रह्मकुंड मंदिर जा सकते हैं। बरसाना में आपको यह कला देखने को मिल जाएगी। श्री राधा रमण मंदिर में भी आप ये कला देख सकते हैं। तो, इस बार पृतपक्ष खत्म होने से पहले ब्रजभूमि में सांझी महोत्सव के लिए आप जा सकते हैं।
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