नई दिल्ली: वाराणसी माटी-पत्थर का बना महज एक शहर नहीं अपितु आस्था विश्वास और मान्यताओं की ऐसी केन्द्र भूमि है जहां तर्को के सभी मिथक टूट जाते हैं। जीवंत रहती है तो सिर्फ समर्पण भरी आस्था। अपने अनेक नामों से जानी जाने वाली वाराणसी दुनिया की प्राचीनतम नगरो में से एक है। इसका एक नाम काशी है तो दूसरा बनारस भी।
काशी इसका प्राचीनतम नाम है जिसका उल्लेख महाभारत काल से मिलता है। घाटों के लिए प्रसिद्ध गंगा नदी किनारे बसी इस नगरी धार्मिक कारणों से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसलिए यह नगरी धर्म, कर्म, मोक्ष की नगरी मानी जाती है।
धार्मिक महत्ता के साथ-साथ काशी अपने प्राचीनतम एवं मनोरम घाटों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ये घाट देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र हैं। प्रात:काल सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देखने योग्य होती है।
यहा के हर घाट की अपनी मान्यता और कहानी है तुलसी घाट पर गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस के कई अंशों की रचना की थी।
राजघाट इस घाट का निर्माण पेशवा के नायक राजा विनायक राव द्वारा कराया गया।
अस्सी घाट नगर के दक्षिण छोर पर स्थित यह घाट काशी के घाटों की श्रृंखला का अंतिम घाट माना जाता है जो दो उप नदियों का संगम स्थल है। यहां भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। रथयात्रा के अवसर पर निकलने वाले रथ पर इसी मंदिर की मूर्ति को रखकर सवारी निकालने की परम्परा रही है।
इन प्रमुख घाटों के अलावा भी अनेक ऐसे घाट हैं जिनका धार्मिक, पौराणिक व स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्व है। इनमें गायघाट, बूंदी पर कोटा घाट, रामघाट, गंगा महल घाट, चौसट्टी घाट व खिड़कियां घाट आदि है।
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