श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई के लिए यहां बनाया था सेतु, वैज्ञानिक भी कर चुके हैं पुष्टि
भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच राम सेतु है। जानें इसके बनने की पौराणिक कथा और वैज्ञानिकों का बयान।
पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का प्रकोप फैला हुआ है। भारत में इस संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन का ऐलान किया गया है ताकि लोग घरों में ही रहें। ऐसे में जनता के मनोरंजन के लिए दूरदर्शन अपने सबसे लोकप्रिय धारावाहिक रामायण का रीटेलीकास्ट कर रहा है। रामायण में लंका कांड चल रहा है और श्रीराम लंका पर चढ़ाई के लिए पुल बनवा रहे हैं। कालांतर में इस पुल को रामसेतु कहा जाने लगा। लोगों के मन मे इस सेतु को लेकर सदैव कौतुहल रहा है कि क्या वाकई उस जगह समुद्र पर कोई मानव निर्मित पुल है या नहीं।
रामसेतु जहां कथा कहानियों में काफी लोकप्रिय है वहीं पिछले कुछ सालों में इसकी वैज्ञानिकता को लेकर भी कई दावे हुए हैं। कई लोग इसे कल्पना मात्र बताते हैं, जबकि विदेशी वैज्ञानक इसकी प्रामाणिकता पर मुहर लगा चुके हैं।
रामसेतु के बारे में कुछ रोचक तथ्य
कहां है राम सेतु ?
भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है। जिसे भारत में रामसेतु और दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई की बात करें तो करीब 30 मील यानी 48 किमी है।
रामसेतु को लेकर मान्यता
तुलसीदास कृत महाकाव्य 'रामायण' में लिखा है कि भगवान राम के लंका पर चढ़ाई के उद्देश्य हेतु रामसेतु का निर्माण भगवान राम की सेना में मौजूद वानर नल और नील ने किया था। इन भाइयों में नल शिल्पकार विश्वकर्मा के पुत्र थे। वानर सेना ने एक-एक पत्थर डालकर सेतु का निर्माण किया था। कहा जाता है कि नल और नील जिस पत्थर पर श्रीराम का नाम डालकर उसे पानी में डालते वो तैरने लगता।
मान्यताओं के अनुसार इस पुल का निर्माण 5 दिन में हुआ था। पुल की पूरी लंबाई 100 योजन थी। इसके साथ ही चौड़ाई 10 योजन की गई। इस सेतु का पहले दिन 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन का निर्माण किया गया था। आपको बता दें कि एक योजन में करीब 13 से 15 किमोमीटर होता है।
इतिहासकार और पुरातत्वविद क्या कहते हैं
बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में इतिहासकार और पुरातत्वविद प्रोफ़ेसर माखनलाल कहते हैं कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है। ऐसे पत्थरों को चुनकर ये पुल बनाया गया गया था। साल 1480 में आए एक तूफ़ान में ये पुल काफ़ी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और साइकिल (पहियों) के ज़रिये इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे।
वैज्ञानिक प्रमाण
अमेरिकी आर्कियोलॉजिस्ट की टीम ने सेतु स्थल के पत्थरों और बालू के सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन करने के बाद एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसनें उन्होंने इसके अस्तित्व के बारे में बताया।
इस रिपोर्ट के अनुसार रामसेतु' के पत्थर और रेत पर किए गए टेस्ट से ऐसा लगता है कि पुल बनाने वाले पत्थरों को बाहर से लेकर आए थे और 30 मील से ज़्यादा लंबा ये पुल मानव निर्मित है। भू-वैज्ञानिकों का ये भी दावा है कि जिस रेत पर यह पत्थर रखा हुआ है ये कहीं दूर जगह से यहां पर लाया गया है। इसके साथ ही कहा कि रेत के निचले हिस्से का पत्थर 7 हजार साल पुराना है जबकि सैंड के ऊपरी हिस्से का पत्थर महज 4 हजार साल पुराना है।