धर्म, रहस्य और रोमांच का संगम है पाताल भुवनेश्वर की गुफा
लखनऊ: भारत के प्राचीनतम ग्रंथ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पिथौरागढ़ जिले में स्थित ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के
कुछ और आगे जाकर नजर आती है हंस की टेढ़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जूठा कर दिया था। यहां ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां भी साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है।
चारों युगों के प्रतीक पिंड भी यहां पर स्थित हैं, जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षो में 1 इंच बढ़ती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि दोनों पिंडो के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जाएगा।
19वीं सदी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित ताम्रपत्र से सुशोभित एक त्रिलिंगी (ब्रहा, विष्णु, शंकर) बना है। जिसमें ऊपर गुफा की छत से जटाओं की तरह बनी हुई संरचनाओं पर से बूंद-बूंद करके टपकते जल से तीनों लिंगों का रुद्राभिषेक होता है। गुफा की शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुंड है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मनोकामना पूरी होती है।
इस तरह इन अद्भुत नजारों का दर्शन करने के बाद वापस भी उसी रास्ते से जाना होता है, जहां से प्रवेश किया गया था। बाहर आने पर महसूस होता है, जैसा कि सच में कुछ देर पहले हम एक दूसरी दुनिया या परलोक में थे।