धर्म, रहस्य और रोमांच का संगम है पाताल भुवनेश्वर की गुफा
लखनऊ: भारत के प्राचीनतम ग्रंथ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पिथौरागढ़ जिले में स्थित ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के
इसी तरह अगर गाइड के बताने पर देवराज इन्द्र के ऐरावत हाथी का शरीर उन चट्टानों में नहीं दिखने पर जब जमीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द इंच की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैर नजर आते हैं, तो यकीन हो उठता है कि भगवान विश्वकर्मा के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं खड़ा कर सकता है। स्कन्द पुराण के मानस खण्ड 103 अध्याय के 155 वें श्लोक में इसका वर्णन है। श्लोक 157 में वर्णित पारिजात व कल्पतरू वृक्ष भी यहां नजर आते हैं।
इसके बाद पर्यटक और श्रद्धालु शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर चल कर पहुंचते हैं उस जगह जहां भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काट कर रख दिया था। आदि गणेश की सिर विहीन मूर्ति लोगों को स्तब्ध कर देती है। इस मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। जहां से दिव्य जल की बूंदें टपकती हैं। मुख्य बूंद तो श्री गणेश के गले में पहुंचती है जबकि पंखुड़ियों से बाजू में टपकती है। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण इस जगह उनकी विशाल जटाएं इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव की तपस्या के कमंडल, खाल सब नजर आते हैं।
थोड़ा आगे चलकर भगवान केदारनाथ नजर आते हैं। उनके बगल में ही बद्रीनाथ विराजमान हैं। ठीक सामने बद्री पंचायत बैठी है जिसमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरुड़ शोभायमान हैं। बद्री पंचायत के ऊपरी तरफ बर्फानी बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। आगे बढ़ते ही काल भैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी मनुष्य काल भैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
इसी के समीप त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा महेश्वर सुशोभित हैं। उनके बगल में भगवान शंकर की झोली यानी भिक्षा पात्र तथा बाघम्बर छाला के दर्शन होते हैं। गुफाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। ये कामधेनु गाय का स्तन है, कलयुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है (मानस खण्ड 103 अध्याय के श्लोक 275-276 में भी ये वर्णन है।)।