Independence day 2019: आजादी के परवानों को अंडमान की इस जेल में दी जाती थी फांसी की सजा, देखिए तस्वीरें
आजादी के परवानों को अंडमान की इस जेल में दी जाती थी फांसी की सजा, देखिए तस्वीरें
स्वतंत्रता दिवस 2019: पूरा भारतवर्ष 15 अगस्त को 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। स्वतंत्रता दिवस हर भारतीय के लिए बेहद खास दिन है। स्वतंत्रता दिवस ही ऐसा दिन है जब हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई नहीं बल्कि हर भारतीय तीरंगा देखकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है। अखंडता में समानता का प्रतीक भारत देश इस साल अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। तो चलिए आपको इस स्वतंत्रता दिवस आपको बताते हैं आजादी से जुड़ी ऐसे दिलचस्प बातें जिसे जानकर हर भारतीय का सीना गर्व से ऊंचा हो जाएगा साथ ही अपने आप को गौरवान्वित भी महसूस करेंगे। आज हम बात करेंगे अंडमान निकोबार की सेल्यूलर जेल के बारे में। इस सेल्यूलर जेल और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी का खास रिश्ता है।
यहां कुल 693 कमरे थे। सेल बहुत छोटा था और बस छत के पास एक रोशनदान हुआ करता था। क़ैदियों से नारियल का तेल निकालने जैसे काम करवाए जाते थे और उन्हें बाथरूम जाने के लिए भी इजाज़त लेनी होती थी। वीर सावरकर को इसी कमरे में क़ैद रखा गया था। डॉ। दीवान सिंह, योगेंद्र शुक्ल, भाई परमानंद, सोहन सिंह, वामन राव जोशी और नंद गोपाल जैसे लोग भी इसी जेल में क़ैद रहे थे। फांसी की सज़ा पाए क़ैदियों को यहां सूली पर लटकाया जाता था। 1942 में जापान ने अंडमान द्वीप पर क़ब्ज़ा कर अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया था। हालांकि 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध ख़त्म होने पर ये फिर से अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े में आ गया।
अंडमान निकोबार का सेल्यूलर जेल वहीं है जहां भारतीय स्वतंत्रता सेनानी को काला पानी की सजा दी जाती थी। बटूकेश्वर दत्त, योगेन्द्र शुक्ला, विनायक दामोदर सावरकर जैसी कई सेनानी को इसी जगह पर काला पानी की सजा दी गई थी। यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी।
अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।