इस पेड़ के साथ वर-वधु करते है अनोखी रस्म, जिसके बिना है शादी अधूरी
छत्तीसगढ़ में आदिकाल से ही वृक्षों की पूजा होती रही है। पीपल, बरगद के वृक्षों को तो सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। वहीं विवाह की रस्मों का भी एक विशेष वृक्ष गूलर गवाह बनता है।
छत्तीसगढ़: शादी यानी कि दो परिवार को एक दूसरे से जुड़ना। दो ऐसे लोगों की शादी जो कि एक-दूसरे को ठीक ढंग से जानते भी नहीं है, लेकिन पूरी जिंदगी उन्हीं के साथ बीतानी होती है। शादी यानी कि ढेरो रस्में। हर धर्म में शादी से संबंधित अपनी-अपनी रस्में होती है। जिसके बिना शादी अधूरी मानी जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसा पेड़ है। जहां पर वर-वधु बिना आर्शीवाद और कुछ रस्मों के बिना शादी अधूरी मानी जाती है।
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छत्तीसगढ़ में आदिकाल से ही वृक्षों की पूजा होती रही है। पीपल, बरगद के वृक्षों को तो सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। वहीं विवाह की रस्मों का भी एक विशेष वृक्ष गूलर गवाह बनता है।
गूलर के पेड़ की लकड़ी और पत्तियों से विवाह का मंडप बनता है। इसकी लकड़ी से बने पाटे पर बैठकर वर-वधू वैवाहिक रस्में पूरी करते हैं। जहां गूलर की लकड़ी और पत्ते नहीं मिलते हैं, वहां विवाह के लिए इस वृक्ष के टुकड़े से भी काम चलाया जाता है।
छत्तीसगढ़ में गूलर 'डूमर' के नाम से विख्यात है। साथ ही इसके वृक्ष और फल का भी विशेष महत्व है। पंडितों का कहना है कि गूलर का पेड़ अत्यंत शुभ माना गया है। पुराणों के अनुसार इसमें गणेशजी विराजमान होते हैं। इसलिए विवाह जैसी रस्मों में इसका खासा महत्व है।
डूमर के पेड़ों और उसकी महत्ता से जुड़ी बातें ग्रामीण अंचलों के कुछ बुजुर्गो ने साझा किया। जगदलपुर निवासी 60 वर्षीय दामोदर सिंह ने बताया कि यह अत्यंत दुर्लभ वृक्ष है, लेकिन जगदलपुर-उड़ीसा के रास्ते पर यह आसानी से मिल जाता है। उन्होंने बताया कि इसके फलों को भालू बड़ी चाव से खाते हैं।
वहीं मंडपाच्छादन में इसके पेड़ों के लकड़ी और पत्तों के छोटे टुकड़े रखना जरूरी होता है। इसकी लकड़ी से मगरोहन (लकड़ा का पाटा) बनाया जाता है, जिसमें वर-वधू को बैठाकर तेल-हल्दी की शुरूआत होती है।
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