हरकतें जो करती है रेल सफर बेमज़ा
नई दिल्ली: सरकारी रेल उपक्रम एक ऐसा महकमा है जिसने न सिर्फ़ लाखों लोगों को रोज़गार दे रखा है बल्कि इतने बड़े देश में ये लाखों करोड़ों लोगों को रोजाना उनकी मंज़िल तक पहुंचाता है।
नई दिल्ली: सरकारी रेल उपक्रम एक ऐसा महकमा है जिसने न सिर्फ़ लाखों लोगों को रोज़गार दे रखा है बल्कि इतने बड़े देश में ये लाखों करोड़ों लोगों को रोजाना उनकी मंज़िल तक पहुंचाता है।
रेल्वे हमारे देश में लंबी यात्रा करने का शायद सबसे सस्ता परिवहन साधन है। ज़ाहिर इससे हमें उम्मीदें भी बहुत रहती हैं लेकिन क्या हम भी रेल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं?
हमारी लापरवाही और जिम्मेदारी के प्रति उदासीन रवैये के कारण भारतीय रेल देश की हालत जर्जर होती जा रही है। अगर हम ज़रा अपनी ज़िम्मेदारी समझे तो हम न सिर्फ़ अपना बल्कि दूसरों का भी सफ़र ख़ुशगवार बना सकते हैं।
रेलगाड़ी के शौचालय से मग ग़ायब: हैरान करने वाली बात ये है कि आख़िर कोई रेल के शौचालय में रखे हुए मग को कोई चुराकर या बाहर फेंक किसी को क्या हासिल हो सकता है। लेकिन ये सच्चाई है और अब तो मग को किसी बेशक़ीमती सामान की तरह बाक़ायदा शौचालय में जंज़ीर से बांधकर रखा जाता है।
भारतीय रेलगाड़ियों में दादागिरी: दादागिरी रेल गाड़ियों में आम है, चाहे वो पैंतीस रूपये का सामान चालीस में बेचने वाला वेंडर हो अथवा रेलगाड़ी को किसी निर्जन इलाके में घंटों रोक दूसरी गाड़ी को आगे बढ़ाने वाला रेल मंडल का कार्यालय हो अथवा गंतव्य स्टेशन आने से पहले ही जंज़ीर खींच रेलगाड़ी से उतर अपनी घरों की ओर जाते भद्र लोग हों! इस तरह भारतीय रेल और उस पर यात्रा कर रहे अन्य यात्री अनेकों भद्र लोगों की दादागिरी सहने के आदी हो चुके हैं.
शौचालय अथवा वाश बेसिन में पड़े अधजले बीड़ी-सिगरेट: जिन धूम्रपान करने वालों से आस-पड़ोस के लोग न बचे हों वो रेलगाड़ियों को भला कहाँ छोड़ते हैं!धूम्रपान करने वाले अक्सर रेलगाड़ी के पायदानों पर खड़े होकर बीड़ी-सिगरेट फूँकते हैं. लेकिन वहाँ भी अन्य यात्रियों द्वारा नाक-मुँह सिकोड़े जाने के भय से कई शौचालयों में छुप कर बीड़ी-सिगरेट फूँकते हैं. शौचालयों या वाश बेसिन में फेंके गये अधजले बीड़ी-सिगरेट उनकी करतूतों को चीख-चीख कर बयाँ करते हैं।
पियक्कड़ों को भी झेलती है भारतीय रेल: रेलगाड़ी में शराब न पीने का नियम होने के बावजूद पियक्कड़ रेलगाड़ी और सह यात्रियों की परवाह नहीं करते. ऊपर अथवा किनारे वाली ऊपरी सीट पर अपने साथी के साथ बैठकर सहज रूप से बैठे पियक्कड़ों को खाते-पीते देखना रेलगाड़ी में चल रहे यात्रियों के लिये आम है.
चादर, कंबल की चोरी: देखने में यह भी आता है कि एसी डिब्बों के लिये नियुक्त सहायकों को प्रतिमाह अपने वेतन से कुछ रूपये कटवाने पड़ते हैं. सिर्फ इसलिये नहीं कि उसने कोई गलती की है बल्कि इसलिये की अपनी चोरी न पकड़े जाने तक ईमानदार कहे जाने वाले भद्र लोग चोरी-छिपे उपयोग के लिये मुहैया कराये गये चादर और कंबलों को अपने साथ ही लेकर चले जाते हैं.