नई दिल्ली: सास बहू का मंदिर राजस्थान में उदयपुर के प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथा पर्यटन स्थलों में से एक है। बहू का मंदिर, जो सास मंदिर से थोड़ा छोटा है, में एक अष्टकोणीय आठ नक़्क़ाशीदार महिलाओं से सजायी गई छत है। मंदिर की दीवारों को रामायण महाकाव्य की विभिन्न घटनाओं के साथ सजाया गया है। मूर्तियों को दो चरणों में इस तरह से व्यवस्थित किया गया है कि एक-दूसरे को घेरे रहती हैं। मंदिर में भगवान ब्रह्मा, शिव और विष्णु की छवियाँ एक मंच पर खुदी हैं और दूसरे मंच पर राम, बलराम और परशुराम के चित्र हैं। 1100 साल पहले मुगलों ने चूने और रेत से इस मंदिर को बंद करवा दिया था। फिर 250 साल पहले पहले अंग्रेंजों ने इस मंदिर को दोबारा आम लोगों के लिए खोला।
इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले कच्छपघात राजवंश के राजा महिपाल औऱ रत्नपाल ने ग्वालियर में एक बड़े और एक छोटे मंदिर का निर्माण करवाया था। बड़ा मंदिर उनकी मां के लिए और छोटा मंदिर उन्होंने अपनी रानी के लिए बनवाया। तब से ही इसे सास-बहू का मंदिर कहा जाने लगा। इस मंदिर में भगवान विष्णु की 32 मीटर ऊंचे और 22 मीटर चौड़े सौ भुजाओं वाली प्रतिमा थी। जिस कारण इसे सहस्त्रबाहु मंदिर भी कहा जाता था।
जब दुर्ग पर मुगलों ने कब्जा किया तो उन्होंने दोनों मंदिरों की दीवारों पर अंकित प्रतिमाओं को खंडित कर दिया औऱ पूरे मंदिर में चूना और रेत भरवाकर बंद कर दिया। इसके बाद ये मंदिर रेत के टापू जैसे दिखने लगे। 19 सदी में जब ब्रिटिश ग्वालियर आए और उन्होंने दुर्ग पर कब्जा किया तो अंग्रेजी सेना के कैप्टेन एच. कोलर और मेजर जेबी किंट ने इस मंदिर की ओर ध्यान दिया। और मंदिर को फिर से खुलवाया।
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