नवरात्र जैसे शुभ समय में आखिर क्यों नहीं होती शादियां, जानिए इसके पीछे की वजह
नवरात्र की धूम हर जगह मची है। पूरे भारत में खासकर नॉर्थ इंडिया में नवरात्र की लहर है। नवरात्र के छठे दिन इस बार मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। लेकिन इस शुभ समय में भी कुछ ऐसे शुभ काम है जो लोग नहीं करते हैं।
नई दिल्ली: नई दिल्ली: नवरात्र की धूम हर जगह मची है। पूरे भारत में खासकर नॉर्थ इंडिया में नवरात्र की लहर है। नवरात्र के छठे दिन इस बार मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। लेकिन इस शुभ समय में भी कुछ ऐसे शुभ काम है जो लोग नहीं करते हैं। आपने ध्यान दिया होगा कि शादी या गृह प्रवेश जैसी शुभ चीज को लोग इस वक्त करना पसंद नहीं करते हैं।
गृह प्रवेश हो या कोई शुभ काम, लोग चाहते हैं कि वो अपना कोई भी शुभ काम करने से पहले नवरात्र का ही समय चुने।बावजूद इसके क्या आप जानते हैं इस दौरान एक ऐसा बड़ा काम भी होता है जिसे इस समय करने की सख्त मनाही होती है। बता दें, लोग इस समय शादियां बिल्कुल नहीं करते।जानिए इसके पीछे की अहम वजह...
नवरात्र पवित्र और शुद्धता से जुड़ा पर्व है, जिसमें नौ दिनों तक पूर्ण पवित्रता और सात्विकता बनाए रखते हुए देवी के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। इस दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिए व्रत रखे जाते हैं। इन दिनों बहुत से श्रद्धालु कपड़े धोने, शेविंग करने, बाल कटाने और पलंग या खाट पर सोने से भी गुरेज करते हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्र में व्रत करते समय बार-बार पानी पीने, दिन में सोने, तम्बाकू चबाने और स्त्री के साथ सहवास करने से व्रत खंडित हो जाता है। चूंकि विवाह जैसे आयोजन का उद्देश्य संतति के द्वारा वंश को आगे चलाना माना गया है, इसलिए इन दिनों विवाह नहीं करना चाहिए।आइए जानते हैं ऐसी ही कई अहम मान्याताएं...
नवरात्र में देवी की उपासना से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं, ऐसी ही मान्यताओं में से एक है घर में जौ रोपना। जौ रोपने और कलश स्थापना के साथ ही मां की नौ दिन की पूजा शुरू होती है। अब सवाल यह कि आखिर जौ ही क्यों?
मान्यता है कि जब सृष्टि की शुरुआत हुई थी, तो पहली फसल जौ ही थी। वसंत ऋतु की पहली फसल जौ ही होती है। जिसे हम माताजी को अर्पित करते हैं। इसलिए इसे भविष्य अन्न भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इस दौरान रोपे गए जौ यदि तेजी से बढ़ते हैं, तो घर में सुख-समृद्धि तेजी से बढ़ती है। लेकिन इस मान्यता के पीछे मूल भावना यही है कि देवी मां के आशीर्वाद से पूरा घर वर्ष भर धनधान्य से भरा रहे।
शास्त्रों में रात्रि काल में देवी पूजा का विशेष फल माना गया है-`रात्रौ देवीं च पूज्येत्।’, क्योंकि देवी रात्रि स्वरूपा हैं, जबकि शिव को दिन स्वरूप माना गया है। इसीलिए नवरात्र व्रत में रात्रि व्रत का विधान हैः-
रात्रि रूपा यतो देवी दिवा रूपो महेश्वरः। रात्रि व्रतमिदं देवी सर्व पाप प्रणाशनम्।। भक्ति और श्रद्धापूर्वक माता की पूजा दिन और रात्रि में कभी भी की जा सकती है।वस्तुतः शिव और शक्ति में कोई भेद नहीं है। इतना अवश्य याद रखें कि इस समय नौ देवियों की पूजा अवश्य की जानी चाहिए।
कुवारी कन्याएं माता के समान ही पवित्र और पूजनीय मानी जाती हैं।हिंदू धर्म में दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं।यही कारण है कि नवरात्रि पूजन में इसी उम्र की कन्याओं का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है।(रिलेशनशिप में चाहिए खुशहाली तो इन बातों का जरूर रखें ख्याल)
शास्त्रों के अनुसार, एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य की, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।(अगर पार्टनर के लिए दिल में हैं ये फीलिंग, तभी शादी का करें फैसला)