जिनसे दुनिया खाती है खौफ, वो शनिदेव इन चार लोगों से डरते हैं
शनिदेव के प्रकोप से पूरी दुनिया डरती हैं लेकिन वह भी कुछ देवी-देवता से डरते हैं। जानिए इनके बारे में विस्तार से।
Highlights
- भगवान शनि को कर्मफलदाता कहा जाता है
- शनिदेव इन देवी-देवताओं के भक्तों पर नहीं डालते हैं अपनी नजर
ज्योतिष शास्त्र में भगवान शनि को न्याय का देवता कहा जाता है। वह व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार फल देते हैं। कहा जाता है कि शनिदेव की दृष्टि से रंक भी राजा बन जाता है। वहीं कर्मों के हिसाब से शनिदेव जातक को दंड भी देते हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि भगवान शनि एक ऐसे देवता हैं जिनसे हर कोई डरता है। उनकी कृपा पाने के लिए विधि-विधान से पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन आपको बता दें कि शनिदेव भी कुछ देवी-देवता से डरते हैं। इतना ही नहीं जो व्यक्ति इन देवी-देवता की पूजा करते हैं उनके ऊपर कभी भी शनिदेव की वक्रदृष्टि नहीं पड़ती हैं।
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शनिदेव पीपल से डरते हैं
शास्त्रों में एक पौराणिक कथा मौजूद है। जिसके अनुसार माना जाता है कि ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। जब वह बड़े हुए तो उन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। इस बात को जानकर पिप्लाद काफी क्रोधित हुए और ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया। इसके साथ ही उन्होंने पीपल के पत्तों का ही सेवन किया। इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनिदेव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए। तब शनिदेव ने कष्ट के समय भगवान शिव को पुरारा, जिन्होंने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे।
भगवान हनुमान
पौराणिक कथाओं में के अनुसार भगवान हनुमान ने शनि देव को रावण की कैद से मुक्ति दिलाई थी। उस समय शनिदेव ने हनुमान जी को वचन दिया था कि वह कभी भी उनके ऊपर अपनी द्रष्टि नहीं डालेंगे। लेकिन वह आने वाले समय में इस वचन को भूल गए और वह हनुमान जी को ही साढ़े साती का कष्ट देने पहुंच गए। ऐसे में हनुमान जी ने अपना दिमाग लगाकर उन्हें अपने सिर में बैठने की जगह दी। जैसे ही शनिदेव हनुमान जी के सिर पर बैठ गए वैसे ही उन्होंने एक भारी-भरकम पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया। शनिदेव पर्वत के भार से दबकर कराहने लगे और हनुमान जी से क्षमा मांगने लगे। जब शनि ने वचन दिया कि वह हनुमान जी के साथ-साथ उनके भक्तों के कभी नहीं सताएंगे तब जाकर हनुमान जी ने शनिदेव को मुक्त किया।
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भगवान शिव
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर से शनिदेव को कर्म दंडाधिकारी का पद दिया। भगवान सूर्य ने अपने पुत्रों की योग्यतानुसार उन्हें विभिन्न लोकों का अधिपत्य प्रदान किया लेकिन पिता की आज्ञा की अवहेलना करके शनिदेव ने दूसरे लोकों पर भी कब्जा कर लिया। सूर्य के भगवान शंकर ने निवेदन किया कि वह शनि को सही राह दिखाए। इसके बाद भगवान शिव ने अपने गणों को शनिदेव से युद्ध करने के लिए भेजा परंतु शनिदेव ने उन सभी को परास्त कर दिया। तब विवश होकर भगवान शंकर को ही शनिदेव से युद्ध करना पड़ा। इस भयंकर युद्ध में शनिदेव ने भगवान शंकर पर मारक दष्टि डाली तब महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर शनि तथा उनके सभी लोकों को नष्ट कर दिया। इतना ही नहीं भगवान भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल के अचूक प्रहार से शनिदेव को संज्ञाशून्य कर दिया। इसके पश्चात शनिदेव को सबक सिखाने के लिए भगवान शंकर ने उन्हें 19 वर्षों के लिए पीपल के वृक्ष से उल्टा लटका दिया। इन वर्षों में शनिदेव भगवान भोलेनाथ की आराधना में लीन रहे। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान शिव के भक्तों पर कभी भी शनिदेव अपनी वक्रद्रष्टि नहीं डालते हैं।
पत्नी
पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि शनिदेव अपनी पत्नी से भी भय लगता है। कथा के अनुसार, भगवान शनि का विवाह चित्ररथ की कन्या के साथ हुआ था। एक दिन चित्ररथ कन्या पुत्र की प्राप्ति की इच्छा लेकर शनिेव के पास पहुंची। लेकिन उस समय वह कृष्ण की भक्ति में मग्न थे। लेकिन काफी समय तक उनकी प्रतिक्षा करने के बाद वह थक गई और अंत में उन्होंने क्रोधित होकर शनिदेव को शाप दे दिया था।