भले ही आपको आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। भागदौड़ भरी जिंदगी में आप इन विचारों को नजरअंदाज ही क्यों न कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज के विचार में आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में ऐसे लोगों के बारे में बताया जो सुखी रहते हैं लेकिन इन लोगों के बीच रहने से उनको हमेशा दुखी रहना पड़ता है। आइए जानते हैं।
श्लोक
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥
भावार्थ
मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर , दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुखियों- रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है - आचार्य चाणक्य
दरअसल, आचार्य चाणक्य जी के मुताबिक गुरु और शिष्य का रिश्ता बेहद ही अच्छा माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु ही वह चाबी होता -जो एक शिष्य को उसकी मंजिल का ताला खोलने में मदद करती है। गुरु अपने छात्रों को हर मुश्किल को आसानी से पार करने और जीवन मे सफलता पाने के लिए तैयार करता है। लेकिन, अगर किसी तेज यानी विद्वान व्यक्ति के जीवन में कोई ऐसा शिष्य आ जाए जिसे कुछ भी न आता हो न ही उसका ध्यान गुरु द्वारा बताए गए रास्ते पर चलता हो तो ऐसे मूर्ख शिष्य से विद्वान व्यक्ति कभी न कभी दुखी जरूर होता है।
चाणक्य जी कहते हैं कि अगर कोई विद्वान व्यक्ति की जीवनसंगिनी अच्छी और समझदार हो तो उसका असर उसके पूरे जीवन पर पड़ता है जिससे वह हर मुश्किल का आसानी से सामना कर सुखी जीवन जीता है। लेकिन ठीक इसके उल्टे अगर किसी विद्वान व्यक्ति के जीवन में अच्छी जीवनसंगिनी का साथ न मिले तो उसका पूरा जीवन ही दुखों से भर जाता है।
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