आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे।आज का ये विचार ऐसे लोगों पर आधारित है जिनके आस-पास रहने से समय बर्बाद होता है।
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य ये बताना चाहते हैं कि कभी भी मूर्ख शिष्य को उपदेश नहीं देना चाहिए। इसके अलावा चरित्रहीन स्त्री का पालन-पोषण करना या दुखी व्यक्ति के साथ रहने से आप सदैव परेशान रहते हैं।
चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहने का प्रयास करना चाहिए जो दुखी और निराश रहते हैं। ये लोग नकारात्मक ऊर्जा से भरे होते हैं। इनका साथ आपको आगे बढ़ने से रोकता है। जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो सदैव ऐसे लोगों की संगत करें जो उत्साह, ऊर्जा और सकारात्मक विचारों से भरे हुए हों।
इसके अलावा जो इंसान दुष्ट स्वभाव को हो या फिर अकारण ही लोगों को नुकसान पहुंचाता हो, उससे दूर रहने में ही भलाई है। आचार्य चाणक्य के मुताबिक इस स्वभाव के व्यक्ति से दोस्ती व्यक्ति करना भारी पड़ सकता है।
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