कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य असाधारण और बुद्धि के स्वामी थे। चाणक्य जी ने अपने बुद्धि कौशल का परिचय देते हुए ही चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था। ये हमेशा ही दूसरों के हित के लिए बात करते थे। भले ही आपको आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। भागदौड़ भरी जिंदगी में आप इन विचारों को नजरअंदाज ही क्यों न कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे।
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में एक सफल व्यक्ति बनने की कई नीतियां बताई हैं। आचार्य चाणक्य ने इन्हीं एक नीति में सुख-शांति के बारे में बताया है। दरअसल, उनके मुताबिक असली सुख-शांति धन के पीधे भागने में नहीं है बल्कि इस काम को करने से मिलती हैं। आइए जानते हैं।
श्लोक
सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च।
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावाताम्॥
भावार्थ :
संतोष के अमृत से तृप्त व्यक्तियों को जो सुख और शान्ति मिलता है, वह सुख- शान्ति धन के पीछे इधर-उधर भागनेवालों को नहीं मिलती ।
आचार्य चाणक्य के इस कथन के मुताबिक, आज के समय में लोग धन के पीछे इस कदर भागते हैं कि उसे पाने की चाहत में घर-परिवार तक को छोड़ दिया है। यहीं आदत उनके निजी जीवन की तबाही का कारण बनती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वह धन कमाने के लिए इस कदर से पागल हो जाते हैं कि वह अपने आसपास मौजूद हर एक चीज को अनदेखा कर देते हैं।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक जीवन में वहीं व्यक्ति सफल होता है जिसके पास संतोष हो। अगर किसी के पास संतोष होगा तभी वह हर एक चीज के पीछे नहीं भागेगा बल्कि अपने आसपास मौजूद चीजों को समझने के साथ जरूरतें भी पूरी करेगा। वहीं चाणक्य जी कहते है कि धन के पीछे भागने वाले इंसान से कहीं ज्यादा खुश वह रहता है जिसके पास जीवन जीने के पर्याप्त संसाधनों के बाद संतोष भी हो।
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