आचार्य चाणक्य ने सफल जीवन जीने के कई नीतियां बताई हैं। इसके साथ ही उन्होंने जीवन को कैसे बेहतर बनाया जाए, सफलता कैसे पाई जाए, व्य़क्तित्व का कैसे निखार करें इन सभी बातों को लेकर भी विस्तार से बताया है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी नीतियों में मनुष्य के चरित्र को लेकर कई बातें बताई हैं। जिनके बारे में आप समय से जानकर दूरी बना सकते हैं।
आचार्य चाणक्य ने अपने एक श्लोक में बताया कि किस तरह के व्यक्ति से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। क्योंकि इस तरह के व्यक्ति न खुद सफल होते हैं और न ही दूसरों को सफल होने देते हैं।
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श्लोक
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मं: ।
ते मत्र्य लोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ।।
जिस मनुष्य के पास विद्या ना हो, तप या दान नहीं देता हो। जिसके पास ज्ञान, नम्रता भी नहीं है और जो गुण और धर्म का आचरण भी नहीं करता ऐसा मनुष्य पशुओं के समान इस संसार में घूमता रहता है।
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आचार्य चाणक्य ने अपने इस श्लोक में बताया है कि मनुष्य के अंदर कौन से गुण न होने पर वह एक पशु के समान होता है। सबसे पहले विद्या, जिसके व्यक्ति के पास विद्या नहीं होती है। वह कभी भी सही निर्णय ले सकता हैं और न ही किसी को कोई सलाह दे सकता है।
दूसरा, मनुष्य का तप या दान न करना। आचार्य चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति का नहीं होता हैं। उन लोगों का चित्त कभी भी शांत नहीं रहता है। तप और दान करने से मन को शांति मिलने के साथ सुकुन भी रहता है।
जिस मनुष्य के पास ज्ञान नहीं है। इस व्यक्ति की सोचने की क्षमता क्षीण होती है। इसके अलावा जिसमें सौम्यता, विनय, नम्रता नहीं है वह लोग भी किसी के सम्मान को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। वहीं जो गुणों और धर्मो का आचरण नहीं करता ऐसा मनुष्य इस संसार में पशुओं के रूप मैं घूमता रहता है।
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