कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और असाधारण और बुद्धि के स्वामी थे। आचार्य चाणक्य ने अपने बुद्धि कौशल का परिचय देते हुए ही चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था। आचार्य चाणक्य हमेशा दूसरों के हित के लिए बात करते थे।
आचार्य चाणक्य ने हमारे जीवन संबंधी कई नीतियां बताई हैं। ऐसे ही आचार्य चाणक्य ने जीवन जीने का एक तरीका बताया है। इसके साथ ही उन्होंने बताया है कि आखिर किन जगहों पर किसी भी व्यक्ति को नहीं रहना चाहिए।
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श्लोक
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
भावार्थ :
जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए ।
आचार्य चाणक्य के अनुसार, ऐसी जगह पर नहीं रहना चाहिए जहां पर आजीविका यानी व्यापार, नौकरी आदि का साधन न हो। क्योंकि इसके बिना जीना किसी भी व्यक्ति के लिए मुश्किल है।
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आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसी जगह पर भी नहीं रहना चाहिए जहां पर लोक-लाज न हो। जिस जगह का समाज मर्यादा के साथ रहता है। वहां के संस्कार के विकास होने के साथ-साथ संस्कृति बनी रहती हैं।
ऐसे जगह पर भी नहीं रहना चाहिए जहां पर लोगों का भय हो। क्योंकि ऐसी जगहों पर समाज और कानून का कोई मोल ही नहीं होता है। ऐसे में आपके अंदर अपनी और परिवार की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रह सकते हैं।
ऐसी जगह पर भी नहीं रहना चाहिए जहां के लोग एक -दूसरे के प्रेम, परोपकार का भाव न हो तो ऐसी जगह पर भी नहीं रहना चाहिए। क्योंकि बुरे वक्त में आपके साथ कोई भी नहीं खड़ा होगा।
ऐसे ही जिस जगह पर लोगों के अंदर दान देने की भावना न हो वहां पर भी नहीं रहना चाहिए क्योंकि दान देने से अंतरात्मा पवित्र होती है। इसके साथ ही दान देने से एक-दूसरे के सुख-दुख के साथ बन जाते है।
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