योगिनी एकादशी का व्रत करने से मिलेगा 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल, जानें पूजा विधि और व्रत कथा
योगिना एकादशी का महत्व पद्मपुराण में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण के अनुसार इस दिन पूजा-पाठ, व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल मिलता है।
आषाढ़ कृष्ण पक्ष की उदया तिथि दशमी और मंगलवार का दिन है | दशमी तिथि सुबह 5 बजकर 41 मिनट तक रहेगी | उसके बाद एकादशी तिथि शुरू हो जाएगी | एकादशी का व्रत और पूजा-अर्चना एकादशी तिथि के दौरान । सुबह और शाम के समय में किया जाता है। आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत किया जाता है | आज के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने से जीवन में चल रही सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है तथा सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस बार योगिनी एकादशी 16 जून को है।
योगिना एकादशी का महत्व पद्मपुराण में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण के अनुसार इस दिन पूजा-पाठ, व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल मिलता है।
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार एकादशी तिथि बुधवार सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक ही रहेगी | लिहाजा एकादशी मंगलवार ही मनायी जाएगी।। दोपहर 1 बजकर 41 मिनट तक शोभन योग रहेगा | शोभन योग शुभ कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है। शोभन योग के समाप्त होते ही अतिगण्ड योग शुरू हो जायेगा | जो की अगले दिन की दोपहर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा।
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योगिनी एकादशी की पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार एकादशी शुरू होने के एक दिन पहले से ही इसके नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। फिर स्वच्छ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। घी का दीप अवश्य जलाए। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। साथ ही भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया। हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उपस्थित हुआ।
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राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- 'अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।'
कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्यु लोक में आकर माली के ऊपर मानो दुखों का पहाड़ टूट गया। वह जंगल में बिना अन्न और जल के भटकता रहा।
रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा।
घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहां जाकर उनके पैरों में पड़ गया।
उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत सुनाया।
यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं। यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे।
यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया।