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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र भीष्म द्वादशी: इस दिन पूजा करने से होगी सभी मनोकामना पूर्ण

भीष्म द्वादशी: इस दिन पूजा करने से होगी सभी मनोकामना पूर्ण

माघ पूर्णिमा की द्वादशी को भीष्म द्वादशी के नाम से मनाया जाता है। इसे गोविंद द्वादशी के भी नाम से जाना जाता हैं। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है साथ ही जिन लोगों के संतान न हो। इस दिन व्रत रखने से उसको संतान की प्राप्ति होती है।

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भीष्म द्वादशी कथा
इस कथा के अनुसार शांतनु की रानी गंगा ने देवव्रत नामक पुत्र को जन्म दिया और उसके जन्म के बाद गंगा शांतनु को छोड़कर चली जाती हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसा वचन दिया था। शांतनु गंगा के वियोग में दुखी रहने लगते हैं परंतु कुछ समय बीतने के बाद शांतनु गंगा नदी पार करने के लिए मत्स्यगंधा नाम की कन्या की नाव में बैठ जाते हैं। बाद में सत्यवती नाम से प्रसिद्ध हुई मत्स्यगंधा के रूप सौंदर्य पर शांतनु मोहित हो जाते हैं।

 राजा शांतनु कन्या के पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखते हैं। परंतु मत्स्यगंधा (सत्यवती) के पिता राजा के समक्ष एक शर्त रखते हैं कि देवी सत्यवती की होने वाली संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी बनेगी, तभी यह विवाह हो सकता है।

राजा शांतनु इस शर्त को स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन वे इस बात से चिंतित रहने लगते हैं। जब पिता की चिंता का कारण देवव्रत को मालूम होता है तो वह अपने पिता के समक्ष आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेते हैं। पुत्र की इस प्रतिज्ञा को सुनकर राजा शांतनु ने देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया।

इस प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत, भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुए। जब महाभारत का युद्ध होता है तो भीष्म पितामह कौरव पक्ष की तरफ से युद्ध लड़ रहे होते हैं और भीष्म पितामह के युद्ध कौशल से कौरव जीतने लगते हैं तब भगवान श्री कृष्ण एक चाल चलते हैं और शिखंडी को युद्ध में उनके समक्ष खड़ा़ कर देते हैं।

अपनी प्रतिज्ञा अनुसार शिखंडी पर शस्त्र न उठाने के कारण उन्होने युद्ध क्षेत्र में अपने शस्त्र त्याग दिए, जिससे अन्य योद्धाओं ने अवसर पाते ही उन पर तीरों की बौछार कर दी और महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया।

कहते हैं कि सूर्य दक्षिणायन होने के कारण शास्त्रानुसार उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे और सूर्य के उत्तरायण होने पर महात्मा भीष्म ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। उन्होंने अष्टमी तिथि माघ को अपने प्राण त्याग दिए उनके तर्पण व पूजन के लिए माघ मास की द्वादशी तिथि निश्चित की गई है, इसीलिए इस तिथि को भीष्म द्वादशी कहा जाता है।

इस तिथि में अपने पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। होता है पापों का नाश भीष्म द्वादशी व्रत सब प्रकार का सुख वैभव देने वाला होता है। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस व्रत में ब्राह्मण को दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ करने से अमोघ फल प्राप्त होता है।

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