धर्म डेस्क: एकादशी के ठीक दूसरे दिन द्वादशी को किया जाता है। यह व्रत समस्त बीमारियों को मिटाता है। इस उपवास से समस्त पापों का नाश होकर मनुष्य को अमोघ फल प्राप्त होता है।
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माघ पूर्णिमा की द्वादशी को भीष्म द्वादशी के नाम से मनाया जाता है। इसे गोविंद द्वादशी के भी नाम से जाना जाता हैं। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है साथ ही जिन लोगों के संतान न हो। इस दिन व्रत रखने से उसको संतान की प्राप्ति होती है। इस बार भीष्म द्वादशी 19 फरवरी, शुक्रवार को है।
भीष्म द्वादशी व्रत भक्तों के सभी कार्य सिद्ध करने वाला होता है। इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करना चाहिए। इस व्रत की पूजा एकादशी व्रत की भांति ही होती है। द्वादशी तिथि में यदि यह तिथि दो दिन तक प्रदोष काल में व्याप्त रहे तो इसे दूसरे दिन प्रदोष काल में ही मनाया जा सकता है। यह व्रत बीमारियों को मिटाता है।
ऐसे करें पूजा
इस दिन ब्रह्म मूहूर्त में अपने सभी कामों से निवृत होकर स्नान के बाद संध्यावंदन करने के बाद षोड़शोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए। भगवान की पूजा में केले के पत्ते और फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का इस्तेमाल करें। साथ ही दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत से तैयार प्रसाद से भगवान को भोग लगाए।
पूजन करने से पहले भीष्म द्वादशी कथा करना चाहिए। कथा करने या सुनने के बाद देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति की जाती है। पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद सभी को दिया जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देनी चाहिए।
इस दिन स्नान-दान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद खुद भोजन करना चाहिए और घर परिवार के सभी लोगों को अपने कल्याण व धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करनी चाहिए।
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