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नारी के बारे में क्या कहता है इस्लाम

अक्सर देखा गया है कि पुरुष प्रदान समाज में नारी की हमेशा उपेक्षा होती रही है, उनके साथ हर युग में सौतेला व्यवहार किया गया है। अगर धर्म की बात करें तो वहां भी उनका

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पत्नी के रूप में सम्मान

क़ुरआन में लिखा है कि पुरुष को अपनी पत्नी से भला व्यवहार करना चाहिए। पत्नी में कोई एक बुरी आदत की वजह से पति को उसे बुरा नहीं समझना चाहिए क्योंकि हो सकता है उसमें कुछ अच्छी आदतें बी हों।

बेटी के रूप में सम्मान

पैग़बर मुहम्मद ने फरमाया है कि “जिसने दो बेटियों का पालन-पोषन कर उनका अच्छी जगह निकाह करवा दिया वह इन्सान क़यामत के दिन हमारे साथ होगा। जिसने बेटियों की परवरिश के दैरान कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नरक के दरवाज़े बंद कर देंगी।

बहन के रूप में सम्मान

क़ुरआन में लिखा है कि अगर किसी की तीन बेटियाँ या तीन बहनें हैं और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता है तो उसे स्वर्ग मिलेगा।

विधवा के रूप में सम्मान

इस्लाम ने विधवाओं की भावनाओं का न सिर्फ़ बड़ा ख़्याल रखा गया है बल्कि उनकी देख भाल और उन पर ख़र्च करने को बड़ा पुण्य बताया गया है।
पैग़बर मुहम्मद ने कहा है: ”विधवाओं और निर्धनों की देख-रेख करने वाला ऐसा है मानो वह हमेशा दिन में रोज़ा रख रहा हो और रात में इबादत कर रहा है।”

ख़ाला (चाची, मैसी) के रूप में सम्मान

इस्लाम ने खाला के रूप में भी महिलाओं को सम्मनित करते हुए उसे मां का दर्जा दिया गया है।

 

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